मध्यलोक मे असंख्यात द्वीप व समुद्र है। सभी द्वीप व समुद्र एक दुसरे को घेरे हुए है। द्वीप समुद्रो के सबसे मध्य में जम्बूद्वीप नामक एक लाख योजन का एक द्वीप है। जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रो मे से एक भरतक्षेत्र है जो जम्बूद्वीप की दक्षिण दिशा मे स्थित हैं। यह भरत क्षेत्र लवण समुद्र और हिमवान पर्वत के मध्य स्थित है। 100 योजन ऊँचे हिमवान पर्वत के ऊपर स्थित पदम सरोवर से निकलने वाली गंगा, सिंधु नदी और विजयार्ध पर्वत के कारण भरत क्षेत्र के छह भाग हो जाते है जिसमे पाँच म्लेच्छ तथा एक आर्य खण्ड है। इस आर्य खण्ड क्षेत्र से ही अघातिया कर्मो के क्षय से मोक्ष प्राप्त होता है। आर्य खण्ड मे ही वृद्धि और ह्रास के द्वारा षटकाल परिवर्तन होता रहता है।
✍️गंगा-सिंधु नदी
हिमवान पर्वत के पदम सरोवर से तीन नदी गंगा, सिंधु, रोहितास्या निकलती है। इनमे से गंगा-सिंधु नदी भरत क्षेत्र मे बहती है। गंगा व सिंधु नदी पदम सरोवर से 500 योजन बहने के बाद गंगा व सिंधु कुट से आधा योजन पहले अर्ध परिकर्मा करती हुई दक्षिण की ओर मुड़कर 523–28/152 योजन आकर हिमवान पर्वत के दक्षिण तट की और बहती हुई जिव्हिका प्रणालिका को प्राप्त होती है।
✍️वृषभांचल पर्वत
भरत क्षेत्र के उत्तर मे जो म्लेच्छ खण्ड है उसके बहुमध्य भाग में रत्नों से निर्मित वृषभगिरि पर्वत है। इस पर ही चक्रवर्ती अपनी विजय प्रशस्ति लिखने के लिए जाते है। पर्वत अतीत काल के चक्रवर्तीयो के नामो से भरा हुआ है। पर्वत 100 योजन ऊँचा, मूल में 100 योजन, मध्य में 75 योजन, शिखर 50 योजन विस्तृत है। इस पर्वत पर वृषभ नाम का देव अपने परिवार सहित रहता है जिसके भवन में अनादिनिधन जिनमंदिर है। वृषभदेव के रहने के कारण इसका नाम वृषभगिरी भी पर्वत भी है।
✍️जिव्हिका प्रणालिका
जिव्हिका प्रणालिका दो कोस लम्बी, दो कोस ऊँची और सवा छ्ह योजन चौडी वृषभाकार अर्थात गोमुखाकार है। इस प्रणालिका के मुख, कान जीभ, नेत्र का आकार सिंह के समान और भौहे मस्तक आदि आकार गाय के समान है इसीलिये रत्नमय जिव्हिका को ‘वृषभ’ कहते हैं। यहा से दोनो नदियाँ बहती हुई गंगा सिंधु कुण्ड को प्राप्त होती है।
✍️गंगा-सिंधु कुण्ड
गंगा-सिंधु नदी जिव्हिका प्रणालिका से निकलकर हिमवान पर्वत से नीचे गिरती है। यह हिमवान को 25 योजन दूर छोडकर 10 योजन चौडी होकर गंगा सिंधु कुण्ड मे स्थित जिनेन्द्र प्रतिमा के मस्तक पर गिरती है मानो अभिषेक ही कर रही हो। यह कुण्ड 60 योजन व्यास 10 योजन गहरा गोल है। इसके मध्य मे जल से आधा योजन ऊँचा और 8 योजन चौडा एक गोल टापू, जिस पर 10 योजन ऊँचा वज्रमय पर्वत है। इसी पर्वत के ऊपर कमलासन पर जिनेन्द्र प्रतिमा पदमासन से स्थित हैं।
✍️विजयार्ध पर्वत की गुफा
गंगा-सिंधु नदी कुण्डो से निकलकर दक्षिण की ओर बहती हुई 08 योजन चौडी होकर विजयार्ध पर्वत की गुफा में प्रवेश करती है। गंगा नदी खण्डप्रपात मे सिंधु नदी तिमिस्र गुफा मे प्रवेश करती है। दोनो गुफाए की ऊँचाई 08 योजन, चौडाई 12 योजन और लम्बाई 50 योजन है। इसी प्रकार गुफा द्वार की ऊँचाई 08 योजन और चौडाई 12 योजन है।
✍️उन्मगना और निमग्ना नदी
दोनो गुफाओ के मध्य मे अर्थात 25 योजन पर पूर्व और पश्चिम मे दो कुण्ड है। इन कुण्डो से निकलने वाली नदी उन्मगना और निमग्ना है जो दो दो योजन चौडी होकर बहते हुए गंगा और सिंधु नदी मे मिल जाती है। उन्मग्ना नदी का स्वभाव है कि यह अपने जल प्रवाह मे गिरे हुए भारी से भारी द्रव्य को ऊपर ले आती है एवं निमग्ना नदी हल्के से हल्के द्रव्य को नीचे ले जाती है। गुफा से निकलते हुए नदी का विस्तार 8 योजन होता है।
✍️अयोध्या (विनीता) नगरी
भरत क्षेत्र के छह खण्डो मे एक आर्यखण्ड है। इसकी उत्तर-दक्षिण लम्बाई 238–03/19 योजन है। इस आर्यखण्ड मे लवण समुद्र से उत्तर और गंगा-सिंधु नदियों के मध्य भाग में 12 योजन लंबी 09 योजन चौड़ी अयोध्या नगरी है जिसे विनीता नगरी भी कहते है। इसी अयोध्या नगरी मे प्रथम चक्रवर्ती भरत जी हुए थे जिसके नाम से इस क्षेत्र का नाम भरतवर्ष पड़ा है।
✍️गंगा-सिंधु का लवण मे मिलना
गुफा से निकलकर दोनो नदी दक्षिण की ओर बहती हुई गंगा नदी पूर्व और सिंधु नदी पश्चिम की ओर मुड जाती है। वहा पर म्लेच्छ खण्डो मे बहने वाली अपनी अपनी 14 -14 हजार परिवार नदियो को लेकर साढे बासठ (62–01/02)योजन विस्तार के साथ गंगा नदी मागध द्वार से और सिंधु नदी प्रभास द्वार से लवण समुद्र मे समा जाती है।
✍️भरत क्षेत्र का विस्तार
यह जम्बूद्वीप का 190 वा भाग है अर्थात 526 पूर्णाकं 06/19 योजन है। यह भरत क्षेत्र की उत्तर से दक्षिण चौडाई है। भरत क्षेत्र पूर्व से पश्चिम मे 14471 पूर्णांक 05/19 योजन है। इसकी जगती 08 योजन ऊँची, मूल मे 12 योजन चौड़ी घटते घटते ऊपर में 04 योजन चौड़ी होती है। इसकी दाक्षिण दिशा में लवण समुद्र मे जिन प्रतिमओ से युक्त एक राक्षसद्वीप है।*
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।। जिनवाणी माता की जय।।
।। आचार्य भारतभूषणाय नम:।।