मध्यलोक के असंख्यात द्वीप समुद्र के बीचोंबीच में जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन लम्बा चौडा थाली के समान आकार वाला गोल द्वीप है। इसकी जगती 8 योजन ऊँची, नीचे 12 योजन चौड़ी घटते घटते ऊपर में 4 योजन चौड़ी रह गई। इसके मध्य नाभी के समान मेरु पर्वत है। यहा छह कुलाचल पर्वत है जिनके कारण जम्बूद्वीप के सात क्षेत्र हुये। कुलाचलो पर पदम-महापदम आदि छह सरोवर है जिसमे श्री ह्रीं आदि देवी का निवास है। सरोवर से गंगा सिंधु आदि 14 महानदियाँ निकलती है।
🔥कुलाचल पर्वत*
छहो कुलाचलो से जम्बूद्वीप के सात क्षेत्र बनते है। ये कुलाचल क्षेत्र यानि वर्ष को बाटने से वर्षधर भी कहलाते है। इनका आकार पूर्व से पश्चिम तक ऊपर नीचे व मूल मे एक जैसी लम्बी दीवार की भांति है तथा आजू-बाजू मे विचित्र मणियो से जडे हुए है। इनका नाम क्रम से–हिमवन, महाहिमवन, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी कुलाचल है।
✍️हिमवान कुलाचल
यह स्वर्ण वर्ण के समान है। यह 100 योजन ऊँचा 25 योजन नीव तथा 1052 सही 12 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 11 कूट है। इस पर स्थित पदम सरोवर मे श्री देवी अपने परिवार के साथ निवास करती है।
✍️महाहिमवान कुलाचल
यह रजत वर्ण के समान है। यह 200 योजन ऊँचा, 50 योजन नीव तथा 4210 सही 10 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 8 कूट हैं। इस पर स्थित महापदम सरोवर मे ह्री देवी अपने परिवार के साथ निवास करती है।
✍️निषध कुलाचल
यह तपाए हुए सोने के वर्ण के समान है। यह 400 योजन ऊँचा, 100 योजन नीव तथा 16842 सही 3 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 9 कूट है। इस पर स्थित तिगिंछ सरोवर मे धृति देवी अपने परिवार के साथ निवास करती है।
✍️नील कुलाचल*
यह नीलमणी के वर्ण समान है। यह 400 योजन ऊँचा, 100 योजन नीव तथा 16842 सही 3 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 9 कूट है। इस पर स्थित केसरी सरोवर मे कीर्ति देवी अपने परिवार के साथ निवास करती है।
✍️रुक्मी कुलाचल*
यह रजत वर्ण के समान है। यह 200 योजन ऊँचा, 50 योजन नीव तथा 4210 सही 10 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 8 कूट हैं। इस पर स्थित महापुण्डरीक सरोवर मे बुद्धि देवी अपने परिवार के साथ निवास करती हैं।
✍️शिखरी पर्वत
यह स्वर्ण वर्ण के समान है। यह 100 योजन ऊँचा 25 योजन नीव तथा 1052 सही 12 बटा 19 योजन चौडा है। इस पर 11 कूट है। इस पर स्थित पुण्डरीक सरोवर मे लक्ष्मी देवी अपने परिवार के साथ निवास करती हैं।
*🔥सातो क्षेत्रों का वर्णन*
जम्बूद्वीप के सात क्षेत्र–भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हरण्यवत और ऐरावत क्षेत्र है। दक्षिण से उत्तर कि ओर पहला भरत और सातवां ऐरावत क्षेत्र है जहां के आर्यखण्डों में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी रूप छह-छह कालों का चक्र चलता रहता है। दूसरे हैमवत और छठे हैरण्यवत क्षेत्र में हमेशा ही जघन्य भोगभूमि पायी जाती है। तीसरे हरिक्षेत्र और पांचवें रम्यक क्षेत्र में हमेशा ही मध्यम भोगभूमि पायी जाती है चौथा विदेह क्षेत्र है जिसके मध्य में सुमेरु पर्वत है, उसके चारों ओर भद्रशाल वन है, वन के दक्षिण में देवकुरु और उत्तर मे उत्तरकुरु है, यहा हमेशा उत्कृष्ठ भोगभूमि पायी जाती है तथा पूर्व और पश्चिम में कर्मभूमि अवस्थित है।
✍️भरत और ऐरावत क्षेत्र
भरत और ऐरावत क्षेत्र का उत्तर दक्षिण विस्तार 526 सही 6 बटा 19 योजन है। इसके मध्य पूर्व पश्चिम लम्बा विजयार्ध पर्वत है। यहा पाँच म्लेच्छ एक आर्य कुल छ्ह खण्ड है। यहा आर्यखण्ड मे छहो कालो का परिवर्तन होता है, कभी भोगभूमि कभी कर्मभूमि आ जाती है। छठे काल के बाद उलटे क्रम से उत्सर्पिणी काल का प्रारम्भ होता है।
यहा अवसर्पिणी मे पहला सुषमा-सुषमा, दूसरा सुषमा, तीसरा सुषमा-दुषमा, चौथा दुषमा-सुषमा, पांचवां दुषमा और छठवां दुषमा-दुषमा काल है। सुषमा को सुखमा और दुषमा को दुखमा भी कहते हैं। चौथे काल से कर्मभूमि शुरु होती है और हमेशा ही जीव मोक्ष जाते हैं।
✍️हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र
यहा सुषमा-दुषमा जघन्य भोगभूमि है इसका उत्तर दक्षिण विस्तार 2015 सही 5 बटा 19 योजन है।
✍️हरिक्षेत्र और रम्यक क्षेत्र
यहा सुषमा काल मध्यम भोगभूमि है। इसका उत्तर दक्षिण विस्तार 8421 सही 1 बटा 19 योजन है।
✍️विदेह क्षेत्र
उत्कृष्ठ भोगभूमि और 32 कर्मभूमि नगरी है। इसका उत्तर दक्षिण विस्तार 33684 सही 4 बटा 19 योजन है। यह क्षेत्र चार भागो मे विभाजित है–पूर्व विदेह, अपर विदेह, उत्तरकुरु, देवकुरु
पूर्व विदेह तथा अपर विदेह मे तो कर्मभूमि है जहाँ सदा दुषमा-सुषमा काल रहता है। इसमे 32 नगरी है। प्रत्येक नगरी मे पाँच म्लेच्छ खण्ड और एक आर्यखण्ड होता हैं, उत्तरकुरु और देवकुरु सुषमा सुषमा काल मे उत्कृष्ठ भोगभूमि है। यहा चार गजदंत पर्वत है, शाश्वत जम्बूवृक्ष और शाल्मली वृक्ष स्थित है
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।।जिनवाणी माता की जय।।
।।आचार्य भारतभूषणाय नमः।।
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