गुरुवार, 29 मई 2025

13. चौबीस ठाणा-पंचेन्द्रिय मार्गण*

13. चौबीस ठाणा-पंचेन्द्रिय मार्गण*
https://youtu.be/-ja9eR2PbG4?si=OvjJghRb-AGoKunj
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*✍️ पंचेन्द्रिय मे २४ स्थान*
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*०१) गति       ०४/०४*   नरक,तिर्यंच, मनुष्य,देव
*०२) इन्द्रिय    ०१/०५*   पंचेन्द्रिय
*०३) काय       ०१/०६*  त्रसकाय
*०४) योग        १५/१५*  
किसी जीव के एक साथ अधिकत्तम १३ योग हो सकते है।
*०५) वेद         ०३/०३*   तीनों वेद
*०६) कषाय     २५/२५*  सभी कषाय
*०७) ज्ञान        ०८/०८*  आठो ज्ञान
*०८) संयम       ०७/०७*  सातो संयम
*०९) दर्शन       ०४/०४*  चारो दर्शन
*१०) लेश्या      ०६/०६*  छहो लेश्या
*११) भव्यक्त्व  ०२/०२*  भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व   ०६/०६* छहो भेद
*१३) संज्ञी        ०२/०२*  संज्ञी, असंज्ञी दोनो
*१४) आहारक  ०२/०२*  आहारक, अनाहारक
*१५) गुणस्थान  १४/१४*  सभी चौदह गुणस्थान
*१६) जीवसमास ०२/१९* 
संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय
*१७) पर्याप्ति       ०६/०६*  छहो पर्याप्तियाँ
*१८) प्राण           १०/१०*  दसो प्राण
*१९) संज्ञा          ०४/०४*  चारो संज्ञा
आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा।
*२०) उपयोग      १२/१२*  
ज्ञानोपयोग ०८, दर्शनापयोग ०४
*२१) ध्यान         १६/१६*  
*आर्तध्यान ०४* इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, वेदना और निदान।
*रौद्रध्यान ०४* हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी
*धर्मध्यान ०४* आज्ञाविचय,अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय।
*शुक्ल ०४* पृथक्त्ववितर्क वीचार, एकत्ववितर्क अवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवृति।
*२२) आस्रव       ५७/५७*   
मिथ्यात्व ०५, अविरति १२, कषाय २५, योग १५
*२३) जाति       /८४ लाख*  २६ लाख
मनुष्य १४ लाख, देव ०४ लाख, नरक ०४ लाख, पंचेन्द्रिय तिर्यंच ०४ लाख
*२४) कुल*                  १०८.५ लाख करोड
मनुष्यों के –  १५  लाख करोड़,
देवों के –       २६ लाख करोड
नारकियों के –२५ लाख करोड़
*पंचेन्द्रिय तिर्यंचो मे*
                   जलचरों के –१२.५ लाख करोड़
                   नभचरों के – १२    लाख करोड़
                   थलचरों के – १९    लाख करोड़
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✍️ पंचेन्द्रिय जीव :-
जिनका चिह्न स्पर्श, रस, गंध, वर्ण तथा शब्द विषयक ज्ञान है, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं।
जिनके पाँच इन्द्रियाँ होती हैं, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं। *जैसे* देव, नारकी, मनुष्य, हाथी, घोड़ा, बैल आदि 
*(गोम्मटसार जीवकाण्ड १६६)*
मनुष्य, देव, नारकी, तिर्यंच संज्ञी, असंज्ञी तिर्यंच, साँप, फन वाले साँप (नाग), सरकने वाले अजगर आदि चौपाये आदि पाँच इन्द्रिय जीव कहलाते हैं।

✍️ पंचेन्द्रिय तिर्यंच के प्रकार :-
पंचेन्द्रिय तिर्यब्ज तीन प्रकार के होते हैं –जलचर, थलचर, नभचर।
*जलचर* जो पानी में रहते हैं, जल ही जिनका जीवन है वे जलचर जीव हैं।
*जैसे* मछली, महामत्स्य, तंदुलमत्स्य आदि।
*थलचर* जो धरती पर निवास करते हैं, वे थलचर है। *जैसे* हाथी, घोड़ा, बैल, गाय, चीता,भैंस आदि 
*नभचर* जो आकाश में उड़ते हैं, वृक्षों पर रहते हैं, वे नभचर हैं। 
*जैसे* कबूतर, चिड़िया, तोता, मैना, कोयल आदि
*मोर भी नभचर हैं थलचर नही*

*प्रश्न ०३) कौन सी इन्द्रि वालो के एक काययोग और एक वचनयोग होता है?*
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवो की पर्याप्तक अवस्था मे अनुभय वचनयोग तथा औदारिक काययोग ही होता है। यह पर्याप्तक अवस्था मे होता है।

*प्रश्न ०४) क्या कोई ऐसा पंचेन्द्रिय जीव सम्यक मार्गणा के सभी भेदों को प्राप्त कर सकता है?*         *(किसी भी एक जीव की अपेक्षा)*
हाँ हो सकता हैं, मनुष्यगति मे हो सकता है। एक निकट भव्य पंचेन्द्रिय जीव के सम्यक्त्व मार्गणा के सभी भेदों को प्राप्त कर सकता है। 
*जैसे* किसी ने मनुष्यो मे *मिथ्यात्व सहित* जन्म लिया तथा आठ वर्ष का होना पर औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करा तो *औपशमिक* भी हो गया। इसका काल अंतर्मुहूत है।
औपशमिक का काल पूरा होने से पहलेअनंतानुबंधी चतुष्क से किसी एक का उदय आ जावे तो वह *सासादन सम्यग्दृष्टि* बन जाता है।
यदि औपशमिक सम्यक्त्व पूरा होने पर सम्यक्त्व मिथ्यात्व का उदय आये तो तीसरा *सम्यग्मिथ्यात्व* भी होता है। 
औपशमिक सम्यक्त्व का काल पूरा हो तथा सम्यक प्रकृति का उदय आ जाए तो *क्षायोपशमिक सम्यक्त्व* होता है। 
वही क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि यदि सात प्रकृति का (अनन्तानुबन्धी चतुष्क तथा मिथ्यात्व, सम्यक मिथ्यात्व तथा सम्यक् प्रकृति) क्षय कर देता है वह *क्षायिक सम्यग्दृष्टि* होता है।
*इस प्रकार एक जीव के सम्यक्त्व मार्गणा के सभी भेद एक भव मनुष्यगति वाले के ही हो सकते हैं*
*नोट* सम्यक मिथ्यात्व तथा सम्यक् प्रकृति का उदय मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनों के आ सकता है।

*प्रश्न ०५) क्या सभी पंचेन्द्रिय जीवों के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं?*
नहीं होती, मात्र सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवों के ही छहों पर्याप्तियाँ होती है। सैनी लब्ध्यपर्यातक जीवों के एक भी पर्यातियाँ पूर्ण नहीं होती हैं,क्योंकि शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले ही उसका मरण हो जाता है इसलिए उनको लब्ध्यपर्यातक/अपर्याप्तक कहा जाता है। उसके छह अपर्याप्तियाँ होती है।
निर्वत्यापर्याप्तक जीव के भी उस समय उस समय छह पर्याप्तियाँ नही होती, शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने पर भी दो पर्याप्ति होती है। जीव के जब छहो पर्याप्तियाँ पूर्ण होती है तभी उसे पर्याप्तक जीव कहते है।

*प्रश्न ०६) पंचेन्द्रिय जीवों के पन्द्रह योग किस अपेक्षा होते हैं?*
पंचेन्द्रिय जीवों के पन्द्रह योग–
*मन ०४*   सत्य,असत्य, उभय, अनुभय मनोयोग
*वचन ०३* सत्य, असत्य, उभय वचनयोग
(संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा तीनो गति के जीवो की अपेक्षा से)
*अनुभय वचनयोग* संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपेक्षा
*औदारिकद्बिक*     मनुष्य–तिर्यंच की अपेक्षा *वैक्रियिकद्विक*      देव– नारकी की अपेक्षा *आहारकद्विक*     छठे गुणस्थान मुनि की अपेक्षा *कार्मणकाययोग* विग्रह गति तथा केवली समद्धात की अपेक्षा

*प्रश्न ०७) पंचेन्द्रिय जीवों की २६ लाख जातियों कौन-कौनसी हैं?*
पंचेन्द्रिय जीवों की २६ लाख जातियाँ– 
*नारकियों* की चार (०४) लाख जातियाँ
*देवों की*         चार (०४) लाख जातियाँ
*मनुष्यों* की     चौदह (१४) लाख जातियाँ
*तिर्यंच पंचेन्द्रियों* की चार (०४) लाख जातियाँ है।

*प्रश्न ०८) पंचेन्द्रिय जीवों के १०८.५ लाख करोड़ कुल कौन- कौन से हैं?*
उत्तर:-पंचेन्द्रिय के १०८.५ लाख करोड़ कुल–
*मनुष्यों के*      १४ लाख करोड़,
*देवों के*          २६ लाख करोड
*नारकियों के*   २५ लाख करोड़
*पंचेन्द्रिय तिर्यंचो मे*
*जलचरों के* १२.५ लाख करोड़
*नभचरों के*     १२ लाख करोड़
*थलचरों के*     १९ लाख करोड़

*प्रश्न ०८) किन जीवों के इन्द्रियाँ नहीं होती हैं?* तेरहवें-चौदहवें गुणस्थान में इन्द्रिया (भावेन्द्रिय) नहीं होता हैं, क्योंकि वहाँ इन्द्रियावरण कर्म का क्षयोपशम नहीं होता है।
विग्रहगति में तथा जब तक इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती तब तक द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं क्योंकि वहाँ इन्द्रिय के योग्य नामकर्म का उदय नहीं होता है।
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*✍️समुच्चय प्रश्नोत्तर*
*प्रश्न ०९) किस इन्द्रिय वाले जीव किस गति में होते हैं?*
*तिर्यंचगति* में एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीव होते हैं।
*नरक, मनुष्य तथा देवगति*  में संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव ही होते हैं।
*मनुष्यगति में अनिन्द्रिय जीव भी होते हैं।*
अनिन्द्रिय के दो अर्थ है–एक मन दूसरा अतिन्द्रिय
*पंचमगति (सिद्ध गति)* अनिन्द्रिय जीव ही होते हैं 

*प्रश्न १०) कौन- कौन से प्राण इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं?*
चार प्राण इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छवास और आयु प्राण।
रसना इन्द्रिय आदि प्राण भी द्वीन्द्रिय जीवों से शुरु होते है।
वचनबल प्राण भी– द्वीन्द्रिय जीवों से शुरु होते है।
मनोबल प्राण भी–  पंचेन्द्रिय जीवो के होते है।

*प्रश्न ११) ऐसे कौन-कौन से उपयोग हैं जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में नहीं पाये जाते हैं*
नौ उपयोग इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में नहीं पाये जाते हैं- ज्ञानोपयोग ०६, दर्शनापयोग ०३
*मतिज्ञान,श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्ययज्ञान, केवलज्ञानोपयोग तथा कुअवधिज्ञानोपयोग. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन*
चक्षुदर्शनोपयोग. एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीवों के नहीं होता है। मात्र तीन उपयोग (कुमतिज्ञानो, कुश्रुतज्ञानो तथा अचक्षुदर्शनोपयोग) होते है।
इनमें से चक्षुदर्शन को छोड्कर शेष आठ उपयोग संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के ही होते हैं। 
*कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और अचक्षुदर्शन सभी इन्द्रियो मे पाए जाते है।*

*प्रश्न १२) आस्रव के ऐसे कौन- कौनसे कारण हैं जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं?*
आस्रव के ३८ प्रत्यय ऐसे हैं, जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं।
*मिथ्यात्व ०५, कषाय २३, अविरति ०७, योग ०३* स्त्रीवेद, पुरुषवेद – एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक नहीं होते हैं । 
रसनादिक चार इन्द्रिय तथा मन संबधी अविरति–
एकेन्द्रिय जीवों के नहीं होती हैं 
मन ०४, वचन ०३ योग भी एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक नहीं हैं। 
आहारकद्विक काययोग मुनिराजो के होता है
वैक्रियिकद्विक काययोग देव नारकियो के होता है
अनुभयवचनयोग भी एकेन्द्रिय जीवों के नहीं है ।
इस तरह संज्ञी पंचेन्द्रिय के १२ अविरति
असंज्ञी पंचेन्द्रिय के ११ अविरति
चतुरिन्द्रिय के १० अविरति
त्रीन्द्रिय के ०९ अविरति
द्वीन्द्रिय के ०८ अविरति
एकेन्द्रिय के ०७ अविरति होती है

*प्रश्न १३) आस्रव के ऐसे कौन-कौन से प्रत्यय हैं जो एकेन्द्रिय में नहीं होते हैं लेकिन पंचेन्द्रिय के होते हैं*
आसव के १९ प्रत्यय ऐसे हैं जो एकेन्द्रिय के नहीं होते हैं लेकिन पंचेन्द्रिय के होते हैं।
अविरतियाँ ०५– रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण तथा मन सम्बन्धी
कषाय ०२)–  स्त्रीवेद तथा पुरुषवेद
योग १२)–     मनोयोग ०४, वचनयोग ०४, आहारकद्विक तथा वैक्रियिकद्रिक काययोग

*प्रश्न १४) पंचेन्द्रिय जीवों के जाति तथा कुल अधिक हैं या एकेन्द्रिय जीवों के?*
पंचेन्द्रियों में कुल अधिक हैं, लेकिन एकेन्द्रियों में जातियाँ अधिक हैं।
पंचेन्द्रियों में १०८.५ लाख करोड़ कुल हैं, एकेन्द्रिय में मात्र ६७ लाख करोड़ कुल ही हैं।
पंचेन्द्रियों के मात्र २६ लाख जातियों हैं तो एकेन्द्रिय जीवों की ५२ लाख जातियाँ हैं।

*प्रश्न १५) इन्द्रिय मार्गणा के कौन भेद में सबसे ज्यादा जीवसमास हैं?*
एकेन्द्रिय जीवों के १४ जीवसमास हैं जो सबसे ज्यादा है।
पृथ्वीकायिक दो, जलकायिक दो, अग्निकायिक के दो, वायुकायिक के दो तथा वनस्पतिकायिक के छह इस प्रकार चौदह (१४) जीवसमास हैं ।

*प्रश्न १६) कौन सी इन्द्रिय वालों के एक काययोग एवं एक ही वचनयोग होता है?*
उत्तर:-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों की पर्याप्त-अवस्था में एक औदारिक काययोग और एक अनुभयवचनयोग होता है।
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*

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