18. चौबीस ठाणा–सत्य मन-वचन, अनुभय मनो योग*
*२४ स्थान सत्यमन, सत्यवचन-अनुभय मनोयोग*
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*०१) गति ०४/०४*
नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति
*०२) इन्द्रिय ०१/०५* संज्ञी पंचेन्द्रिय
*०३) काय ०१/०६* त्रसकाय
*०४) योग स्वकीय/१५*
जैसे सत्यमनोयोगी के सत्यमनयोग
*०५) वेद ०३/०३* तीनों
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद
*०६) कषाय २५/२५* कषाय १६ नोकषाय ०९
*०७) ज्ञान ०८/०८* आठो ज्ञान
*०८) संयम ०७/०७* सातो संयम
*०९) दर्शन ०४/०४* चारो दर्शन
चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन
*१०) लेश्या ०६/०६* छहो लेश्या
कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पदम और शुक्ल
*११) भव्यक्त्व ०२/०२* भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व ०६/०६* छहो
मिथ्यात्त्व, सासादन, मिश्र, औपशमिक, क्षायिक, क्षयोपशमिक सम्यक्त्व
*१३) संज्ञी ०१/०२* सैनी
सैनी-असैनी से रहित जीव भी होते है।
*१४) आहारक ०१/०२* आहारक
*१५) गुणस्थान १३/१४* ०१-१३ तक
*१६) जीवसमास ०१/१९* संज्ञी पंचेन्द्रिय
*१७) पर्याप्ति ०६/०६* छहो
आहार,शरीर,इन्द्रिय,श्वासोच्छवा,भाषा,मनःपर्याप्ति
*१८) प्राण १०/१०* दसो प्राण
*१९) संज्ञा ०४/०४* सभी संज्ञा
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग १२/१२* सभी बारह
*२१) ध्यान १४/१६*
सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवृति के बिना
*२२) आस्रव ४३/५७*
मिथ्यात्व ०५,अविरति १२,कषाय २५, योग स्वकीय
*२३) जाति २६ लाख/८४ लाख*
*२४) कुल–१०८.५ लाख करोड/१९९.५ लाख करोड*
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*प्रश्न १२) सत्य मनोयोग किसे कहते हैं?*
उत्तर : सम्यग्ज्ञान के विषयभूत अर्थ को सत्य कहते हैं। *जैसे* जल ज्ञान का विषय जल सत्य है,क्योंकि स्नान-पान आदि अर्थ क्रिया उसमें पाई जाती हैं सत्य अर्थ का ज्ञान उत्पन्न करने की शक्ति रूप भाव मन सत्य मन है। उस समय मन से उत्पन्न हुआ योग अर्थात् प्रयत्न विशेष सत्य मनोयोग है।
* (गो. जी. जी. २१७-२१८)*
*प्रश्न १३) सत्य वचनयोग किसे कहते हैं?*
उत्तर : सत्य अर्थ का वाचक वचन सत्य वचन है।
स्वर नामकर्म के उदय से प्राप्त भाषा पर्याप्ति से उत्पन्न भाषा वर्गणा के आलम्बन से आत्मप्रदेशों में शक्ति रूप जो भाव वचन से उत्पन्न योग अर्थात् प्रयत्न विशेष है, वह सत्यवचन योग है।
*(गो. जी. २२० सं. प्र.)
दस प्रकार के सत्यवचन में वचन वर्गणा के निमित्त से जो योग होता है वह सत्य वचन योग है।
*(पंच संग्रह प्राकृत)*
*दस प्रकार के सत्य* जनपद, सम्मति, स्थापना, नाम, रूप, प्रतीत्य/आपेक्षिक, व्यवहार, संभावना, भाव और उपमा
यहा बोलने की शक्ति को ही सत्यवचन योग कहाँ है, बोलना जरुरी नही है।
*प्रश्न १४) अनुभय मनोयोग किसे कहते हैं?*
उत्तर : अन=नही, उभय=दोनो नही
जो मन सत्य और असत्य से युक्त नहीं होता, वह असत्य मृषामन है अर्थात् अनुभय अर्थ के ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप भावमन से उत्पन्न प्रयत्न विशेष अनुभय मनोयोग है। अर्थात अनिर्णयत्मक वस्तु *( गो.जी. २१९)*
किसी वस्तु का निर्णय नही होना कि यह सत्य है या असत्य यह है अनुभय उस अनुभय का विचार करना अनुभयमन और इसके निमित्त से आत्मा के प्रदेशो का कम्पन होना अनुभय मनोयोग है।
अनुभय ज्ञान का विषय अर्थ अनुभय है, उसे न सत्य ही कहा जा सकता है और न असत्य ही कहा जा सकता है। *जैसे* कुछ प्रतिभासित होता है। यहाँ सामान्य रूप से प्रतिभासमान अर्थ अपनी अर्थक्रिया करने वाले विशेष के निर्णय के अभाव में सत्य नहीं कहा जा सकता है और सामान्य का प्रतिभास होने से असत्य भी नहीं कहा जा सकता है। इसलिए जात्यन्तर होने से अनुभय अर्थ स्पष्ट चतुर्थ अनुभय मनोयोग है। *जैसे* किसी को बुलाने पर ‘ हे देवदत्त’ यह विकल्प अनुभय है। *(गो. जी. २१७)*
*प्रश्न १५) सत्य तथा अनुभय मन- वचन योग का कारण क्या है?*
उत्तर : सत्य तथा अनुभय मन-वचन योग का मूल कारण (निमित्त) प्रधानकारण पर्याप्त नामकर्म और शरीर नामकर्म का उदय है। (क्योकि ये पर्याप्तक के ही होते है) *(गो. जी. २२७)*
*प्रश्न १६) सत्य मनोयोगी के क्षायिक सम्यक्त्व में कितने गुणस्थान होते हैं?*
उत्तर : सत्य मनोयोगी के क्षायिक सम्यक्त्व में चौथे से तेरहवें गुणस्थान तक कुल दस (१०) गुणस्थान होते हैं।
*(क्षायिक सम्यक्त्व तो १४ वे गुणस्थान तक होता हैं लेकिन योग केवल १३ वे गुणस्थान तक होता है)*
*प्रश्न १७) सत्य वचनयोगी के केवलदर्शन में कितने गुणस्थान हो सकते हैं?*
उत्तर : सत्य वचनयोगी के केवलदर्शन में एक ही गुणस्थान होता है-तेरहवा (१३) गुणस्थान ।
*प्रश्न १८) सत्य मनोयोगी जीव के कम-से-कम कितने प्राण होते हैं?*
उत्तर : सत्य मनोयोगी जीव के कम-से-कम चार प्राण होते हैं– वचन बल, कायबल, श्वासोच्चवास और आयु प्राण। (ये चार प्राण सयोग केवली की अपेक्षा कहे गये हैं।)
*प्रश्न १९)केवली भगवान के मनोयोग है तो मनोबल क्यों नहीं कहा गया है?*
उत्तर : अंगोपांग नामकर्म के उदय से हृदयस्थान में जीवों के द्रव्यमन की विकसित खिले हुए अष्टदल कमल के आकार रचना हुआ करती है। यह रचना जिन मनोवर्गणाओं के द्वारा होती है उनका जिनेन्द्र भगवान सयोगी केवली के भी आगमन होता है। इसलिए उनके उपचार से मनोयोग कहा गया है । लेकिन ज्ञानावरण तथा अन्तराय कर्म का अत्यन्त क्षय हो जाने से उनके मनोबल नहीं होता है। क्योंकि मनोबल की उत्पत्ति ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से होती है। *(गो. जी. २२९)*
*प्रश्न २०) क्या ऐसे कोई सत्य मनोयोगी हैं जिनके मात्र दो संज्ञाएँ हों?*
उत्तर : है, नवम गुणस्थान के सवेदी मनोयोगी मुनिराज के मात्र दो संज्ञाएँ पाई जाती हैं-मैथुन और परिग्रह सज्ञा। अभेद भाग से परिग्रह संज्ञा होती हैं।
*प्रश्न २१) सत्यादि तीन योगों में चौदह ध्यान ही क्यों होते हैं?*
उत्तर : सत्य मन, सत्य वचन और अनुभय मन इन तीनो मे चार आर्त्तध्यान, चार रौद्रध्यान, चार धर्मध्यान तथा दो शुक्लध्यान होते हैं।
तीसरा शुक्लध्यान जब केवली भगवान मनोयोग तथा वचनयोग को नष्ट कर देते हैं एवं सूक्ष्मकाययोग रह जाता है तब तीसरा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती ध्यान होता है। अर्थात् तीसरा शुक्लध्यान औदारिक काययोग से ही होता है। अतः इन तीनों योगों में १४ ही ध्यान कहे हैं, पन्द्रह नहीं ।
*प्रश्न २२) अनुभय मनोयोगी के आस्रव के कम-से- कम कितने प्रत्यय होते हैं?*
उत्तर : अनुभय मनोयोगी के आस्रव का कम-से-कम एक प्रत्यय हो सकता है। ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें गुणस्थान में केवल एक स्वकीय अर्थात् अनुभय मनोयोग सम्बन्धी आस्रव का प्रत्यय होगा, क्योंकि एक समय में एक ही योग हो सकता है। *(ईर्यापथ आस्रव)*
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*
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