जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के बहुमध्य भाग मे नाना प्रकार के उत्तम रत्नो से रमणीय रजतमय पूर्व से पश्चिम लम्बा एक पर्वत स्थित है जिसे विजयार्ध पर्वत कहते है। यह दोनो कोणो से लवण समुद्र को स्पर्श कर रहा है, इसका दूसरा नाम रजताचल पर्वत भी है। इस पर्वत का वर्ण चाँदी के समान है।
*✍️इसका नाम विजयार्ध क्यो*
चक्रवर्ती जब छ्ह खण्डो को जीतने के लिए जाता है उस समय चक्रवर्ती के विजय क्षेत्र की आधी सीमा को चिहिंत करने से इस पर्वत का नाम विजयार्ध है। इस पर्वत का विद्याधरो के साथ सदा ही संसर्ग रहता है और गंगा -सिंधु नाम की दोनो नदियाँ उसके नीचे से होकर बहती है और अन्य कुलाचलो को भी जीत लिया इसी कारण से वह विजयार्ध सार्थक नाम को धारण कर रहा है।
पूरे जम्बूद्वीप मे चौतीस विजयार्ध पर्वत है (एक भरतक्षेत्र मे एक ऐरावत में बत्तीस विदेह नगरीयों मे) यहा भरत और ऐरावत के विजयार्ध के दक्षिण और उत्तर दिशा की दोनो श्रेणीयो मे एक सौ दस नगरिया है।
*✍️विजयार्ध का विस्तार*
विजयार्ध की चौडाई पचास योजन (200000 मील), ऊँचाई पच्चीस योजन (100000 मील) एवं नीव सवा छ्ह योजन है।
विजयार्ध पर्वत की लम्बाई दक्षिण की ओर 9748
– 12/19 योजन तथा उत्तर दिशा कि और 10727–11/19 योजन है।
इसमे खण्डप्रपात और तिमिस्र नामक दो गुफाए है, इन्ही गुफाओ से चक्रवर्ती शेष तीन खण्डो को विजय प्राप्त करने के लिए जाता है।
*✍️गुफाओ का विस्तार*
विजयार्ध पर्वत पर स्थित खण्डप्रपात एवं तमिस्र गुफाए उत्तर-दक्षिण मे पचास योजन लंबी, पूर्व पश्चिम मे बारह योजन चौड़ी व आठ योजन ऊँची है।इसके दरवाजे भी आठ योजन ऊँचे है। इन्ही दरवाजो से चक्रवर्ती भरतक्षेत्र के उत्तर मे विजय के लिए जाता है। इन्ही गुफाओ के दरवाजो की दहलीज से गंगा व सिंधु नदी प्रवेश करती व निकलती है। खण्डप्रपात गुफा से गंगा नदी, तिमिस्र गुफा से सिंधु नदी का प्रवेश होता है।
*✍️उनमग्नजला व निमग्नजला नदी का वर्णन*
खण्डप्रपात व तिमिस्र गुफा मे पूर्व तथा पश्चिम मे दो-दो कुण्ड है। पूर्व कुण्ड उन्मग्ना नदी,पश्चिम कुण्ड निमग्ना नदी का है। उनमग्नजला व निमग्नजला नदी दोनो गुफाओ में है। ये दोनो नदी अपने कुण्ड से दो-दो योजन चौडी होकर सीधी बहते हुए गुफा के भीतर ही गंगा व सिंघु नदी मे मिल जाती है। उन्मग्ना नदी का स्वभाव है कि वह अपने जल के प्रवाह मे गिरे हुए भारी से भारी द्रव्य को ऊपर ले आती है, तथा निमग्ना नदी का स्वभाव है कि वह अपने जल के प्रवाह मे गिरे हल्के से हल्के द्रव्य को नीचे ले जाती है।
*✍️विजयार्ध पर कौन-कौन रहता हैै*
विजयार्ध पर्वत की तलहटी से दस योजन ऊपर जाकर दोनो ओर दस-दस योजन चौडी एवं पर्वत समान लंबी दो श्रेणियॉ है जिसमे अनेक विद्याधरो का निवास है। भरत और ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध की दक्षिण महाश्रेणी मे पचास और उत्तर महाश्रेणी मे साठ विद्याधर नगरी है, ये सब स्वर्गपुरी के समान है। ये विद्याधर देव नही मनुष्य ही होते है, इन्हे विशेष विद्याए प्राप्त है। विद्याघरो के क्षेत्र मे चतुर्थ काल के समान काल होता है। इनकी आयु उत्कृष्ट एक कोटी पूर्व व जघन्य एक सौ बीस वर्ष है। इनके शरीर की अवगाहना भी उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष, जघन्य सात हाथ होती है। यहा कर्मभूमि हैै षट कर्मो के द्वारा जीवन यापन होता है।
*✍️लोकपाल व व्यंतरो की नगरियाँ*
विद्याधरो की नगरी से दस योजन ऊपर जाकर दस योजन विस्तृत पर्वत बराबर अभियोग जाति के क्रीड़ा के योग्य अनेक नगर स्थित है।
यहा पर चार लोकपाल देवो का भी निवास हैै। ये देव सौधर्म इन्द्र की आज्ञा मे चलते है, इन सभी देवो की ऊँचाई दस धनुष व आयु एक पल्य होती है।
*✍️भरत विजयार्ध पर कूट और देव*
अभियोग व्यंतर देवो से पाँच योजन ऊपर एक पूर्णभद्र नाम की श्रेणी है जो दस योजन चौड़ी है तथा विजयार्ध नामक देव से आश्रित है अर्थात यहाँ विजयार्ध देव का निवास है। इस पर नौ कूट है जिसके नाम पूर्व से शुरु करके इस प्रकार है–
*कूट देव*
सिद्धवर (सिद्धायतन) जिन मन्दिर
दक्षिणार्ध भरत दक्षिणार्ध भरत
खण्ड प्रभात नृत्यमाल
मणिभद्र (पूर्णभद्र) मणिभद्र
विजयार्ध विजयार्ध कुमार
पूर्णभद्र (मणिभद्र) पूर्णभद्र देव
तामिस्र गुहा कृतमाल
उत्तरार्ध भरत उत्तरार्ध भरत
वश्नवण वश्नवण देव
◆नोट◆ त्रिलोकसार मे मणिभद्र के स्थान पर पूर्णभद्र और पूर्णभद्र के स्थान पर मणिभद्र है।
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*✍️ऐरावत विजयार्ध पर कूट और देव*
अभियोग व्यंतर देवो से पाँच योजन ऊपर शिखर पर नौ कूट है जिसके नाम पूर्व से शुरु करके इस प्रकार है–
*कूट देव*
सिद्धवर (सिद्धायतन) जिन मन्दिर
उत्तरार्ध ऐरावत उत्तरार्ध ऐरावत
खण्ड प्रभात कृतमाल
मणिभद्र मणिभद्र
विजयार्ध विजयार्ध कुमार
पूर्णभद्र पूर्णभद्र देव
तामिस्र नृत्यमाल देव
दक्षिणार्ध ऐरावत दक्षिणार्ध ऐरावत
वश्नवण वश्नवण देव
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ये सभी कूट कांचनमय है। ये सवा छ्ह योजन ऊँचे, मध्य मे चार योजन ढाई कोस, शिखर पर कुछ अधिक तीन योजन के है। पूर्व दिशा के प्रथम कूट सिद्धवर कूट जिसको सिद्वायतन भी कहते है जिस पर अकृत्रिम चैत्यालय सुशोभित है। इन अविनाशी जिनमन्दिर की ऊँचाई पौन कोस (3/4 कोस), चौडाई आधा कोस और लम्बाई एक कोस है।
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।।जिनवाणी माता की जय।।
।।आचार्य भारतभूषणाय नमः।।
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