Friday, 4 August 2023

मेरु (सुमेरू) पर्वत

*मेरु (सुमेरु) पर्वत*
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तीनो लोक के बीचो बीच मे त्रस नाडी है, इसी नाड़ी के मध्य मे एक राजु का मध्यलोक है, जिसमे गोल गोल असंख्यात द्वीप व समुद्र है। इन्ही द्वीपो के मध्य में स्थित ढाई द्वीप मे पाँच मेरु स्थित है। ढाई द्वीप के बाहर मनुष्य नही होते इसलिए इसे मनुष्यलोक कहते है।
पहला सुदर्शन मेरु है इसे ही सुमेरु कहते है, यह नाभी के समान है, दूसरा विजय तीसरा अचल चौथा मन्दर तथा पाँचवा विद्युन्माली मेरु है।

इन मेरु के ऊपर उर्ध्वलोक नीचे अधोलोक है, तथा जितना ऊचाँ पहला मेरु है उतना ही ऊँचा मध्यलोक है। प्रत्येक मेरु के ऊपर चार-चार वन तथा प्रत्येक वन मे चार चैत्यालय होने से कुल सोलह चैत्यालय है। प्रत्येक चैत्यालय मे एक सौ आठ - एक सौ आठ प्रतिमाएँ होने से पाँचो मेरु मे कुल आठ हजार छ्ह सौ चालीस जिन प्रतिमाएँ है।
पहला सुमेरु पर्वत एक लाख चालीस योजन ऊँचा है जिसमे चालीस योजन की चूलिका है। यह मेरु चित्रा पृथ्वी के नीचे एक हजार योजन इसकी नीव है, तथा चित्रा पृथ्वी के ऊपर निन्यानवे हजार योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है तथा चालीस योजन की चूलिका है।

चित्रा पृथ्वी के समतल भाग पर पहला भद्रशाल वन है, इस वन से पाँच सौ योजन ऊपर जाकर एक कटनी है कहा पर दूसरा वन नंदन वन हैै, इससे 
बासठ हजार पांच सौ योजन ऊपर जाकर कटनी पर तीसरा सौमनस वन है, इस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर सुमेरु के शीर्ष पर चौथा पाण्डुक वन है तथा ये सभी वन सुमेरु के चारो और स्थित है।
चारो वनो के तीनो अन्तरालो (५००+ ६२५०० + ३६०००) को इकट्ठा करने पर सुमेरु की ऊचाई निन्यानवे हजार योजन आती हैै, एक हजार योजन की नीव, तथा चालीस योजन की चूलिका को मिलाकर मेरु की ऊँचाई एक लाख चालीस (१०००४०) योजन हो जाती है।
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*✍️वनो तक मेरु की चौडाई व ऊँचाई*
चित्रा पृथ्वी के तल भाग मे सुमेरु पर्वत का व्यास १००९०–१०/११ योजन है तथा ऊपरिम भाग मे इसका व्यास दस हजार योजन है। इसके आगे निन्यानवे हजार योजन ऊपर जाकर जहाँ पाण्डुक वन है वहा इसका व्यास एक हजार योजन रह जाता है। यह व्यास समान रुप से नही घटता है।

चित्रा पृथ्वी के समतल भद्रशाल वन है वहा से पाँच सौ योजन ऊपर नंदन वन है वहा से बासठ हजार पाँचसो योजन पर सोमनस वन है। परन्तु इसमे ग्यारह हजार योजन तक तो सुमेरु पर्वत की चौडाई समान है और शेष इक्यावन हजार पाँच सौ योजन तक क्रम से उसकी चौडाई घटती गई है।
सौमनस वन से पाण्डुक वन छत्तीस हजार योजन ऊचाई पर है परन्तु यहा भी सौमनस से ग्यारह हजार योजन तक मेरु की चौडाई समान है और शेष पच्चीस हजार योजन क्रम से घटती गई है।
सुमेरु पर्वत नीचे से इकसठ हजार योजन तक नाना प्रकार के रत्नो से सुभोषित होने के कारण अनेक वर्ण का है उसके ऊपर पूरा मेरु मात्र सुवर्णमय है।
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*✍️पहला वन भद्रशाल वन* 
 यह धरातल पर स्थित हैं यह पूर्व तथा पाश्चिम दिशा में बाईस-बाईस हजार योजन चौडा तथा उत्तर और दक्षिण दिशा में दो सौ पचास - दो सौ पचास योजन चौडा है। यहा चारो दिशाओं मे एक एक उत्कृष्ठ चैत्यालय कुल चार चैत्यालय है।
इन चैत्यालयो की –
लम्बाई सौ   (१००) योजन   (२००००० कोस), 
चौडाई पचास (५०) योजन   (१००००० कोस),
ऊचाई पिचहत्तर (७५) योजन (१५०००० कोस) हैै।

*✍️दूसरा वन नंदन वन है* 
यह वन चारो और से पाँच सौ योजन चौडा है इसके चारो दिशाओं मे एक-एक उत्कृष्ट अकृत्रिम चैत्यालय कुल चार चैत्यालय है।
इन चैत्यालयो की –
लम्बाई सौ   (१००) योजन   (२००००० कोस), 
चौडाई पचास (५०) योजन   (१००००० कोस),
ऊचाई पिचहत्तर (७५) योजन (१५०००० कोस) हैै।

यहा पर मेरु पर्वत का व्यास ९९५४-०६/११ योजन हैै। यहा नंदन वन मे चार भवन, आठ कूट व सोलह वापिकाए बनी हुई है। इन वापिकाओ मे भी भवन बने हुए है, यहा चारो भवन पर चारो लोकपाल निवास करते है। वापिकाओ मे आग्नेय व नैऋत्य दिशा वाली वापिकाओं का स्वामी सौधर्म इन्द्र तथा वायव्य व ईशान दिशा वाली वापिकाओ का स्वामी ईशान इन्द्र हैं।

*✍️तीसरा वन सौमनस वन* 
यहा पर मेरु पर्वत का व्यास ४२७२-८/११ योजन है।इस वन की चौडाई चारो और से पाँच सौ योजन है, यहा पर भी चारो दिशा मे एक-एक चैत्यालय कुल चार मध्यम चैत्यालय है। 
लम्बाई---पंचास (५०) योजन
चौडाई---पच्चीस (२५) योजन
ऊचाई----साढे सतीस (३७–१/२) योजन है
इस वन का सारा वर्णन नंदन वन के समान है

*✍️चौथा वन पाण्डुक वन* 
यहाँ पर पर्वत का व्यास एक हजार योजन तथा वनो की चौडाई चार सौ चौरानवे योजन है। यहा चारो दिशाओ मे एक-एक चैत्यालय कुल चार जघन्य अकृत्रिम चैत्यालय है।
लम्बाई---पच्चीस (२५) योजन
चौडाई---साढे बारह (१२–१/२) योजन
ऊचाई---पौने उन्नीस (१८–३/४) योजन हैं।

पाण्डुक वन के चारो विदिशाओ मे चार अर्ध चन्द्राकार शिलाए है जिन पर बाल तीर्थंकर भगवान का जन्माभिषेक होता है। ये शिलाए सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौडी तथा आठ योजन मोटी है। प्रत्येक शिलाओं के ऊपर तीन-तीन सिंहासन बने है। बीच वाला सिंहासन पर बाल तीर्थंकर बाकी दोनो जिसे भद्रासन कहते है सौधर्म और ईशान इन्द्र का है। इन सिंहासनो की ऊँचाई पाँच सौ धनुष है। 
यहा तक मेरु पर्वत की ऊँचाई एक लाख योजन हो जाती हैै।

*✍️चूलिका* 
पाण्डुक वन के ऊपर चालीस योजन ऊँची चूलिका है। इस चूलिका का तल व्यास बारह योजन व मुख व्यास चार योजन है इसका वर्ण नीलमणी मय है यही से बाल बराबर के अन्तर से उर्ध्वलोक का पहला पटल ऋजू (ऋतु) पटल है।
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*✍️बाकी चार मेरु पर्वत की ऊँचाई*
मनुष्य लोक मे पाँच मेरु पर्वत है, सुदर्शन, विजय, अचल, मन्दर, विद्युन्माली इनमे से सुदर्शन मेरु अर्थात सुमेरु पर्वत की ऊचाई तो १००० + ९९००० + ४०=१०००४० योजन है*
बाकी चारो मेरु की ऊचाई १००० + ८४०००  + ४० योजन है = (८५०४० योजन)
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*शलभ*


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