Friday, 18 August 2023

✍️कल्पवृक्ष


भोगभूमि में मनुष्यों की संपूर्ण आवश्यकताओं को चिंता मात्र से पूरी करने वाले वृक्षो को कल्पवृक्ष कहते है। कल्पवृक्षो के द्वारा ही भोगभूमि के जीवो को मनवांछित फल प्राप्त होते है। भोग भूमियों में जन्मे युगल कल्पवृक्षो द्वारा दी गई वस्तुओं का भोग भोगते है। युगलिक काल में जीव वस्त्र-आभरण, अन्न पान एवं आवासादी की आपूर्तियाँ कल्पवृक्ष ही करते है। आज भी कल्पवृक्ष का अस्तित्व मेरु पर्वत, देव कुरु, उत्तर कुरु अवं अन्य युगलिक क्षेत्रो में है।

भरतक्षेत्र के आर्यखंड में अवसर्पिणी काल के प्रथम तीन काल तथा उत्सर्पिणी के अंतिम तीन कालो मे सभी कल्पवृक्ष विद्यमान होते है। कल्पवृक्ष ना वनस्पतिकायिक होते हैं और न देवों द्वारा अधिष्ठित वृक्ष, ये वृक्षाकार रूप में पृथ्वी के सार स्वरूप सामान्य वृक्षों की भाँति पृथ्वीकायिक होते है। और जीवो को उसके पुण्य के अनुसार इष्ट फल प्रदान करते है। ये दस प्रकार के होते है— 
तूर्यांग (वाद्यांग), पानांग (मद्यांग), भूषणांग,  वस्त्रांग, भोजनांग (आहारंग),  आलयांग (गृहांग),  दीपांग, भाजनांग (पात्रांग), मालांग (पुष्पांग) और तेजांग (ज्योतिरांग) दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं।
*(त्रिलोकसार ७८७, तिलोयण्णत्ती ०४/३४२)*
🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️🕳️

✍️ तूर्यांग (वाद्यांग) कल्पवृक्ष
वाद यंत्र, तूर्यांग जाति के कल्पवृक्ष उत्तम वीणा, पटु, पटह, मृदंग, झालर, शंख, दुंदुभि, भंभा, भेरी और काहल इत्यादि भिन्न-भिन्न प्रकार के वाद्ययंत्रों आदि संगीतमय सामग्री को देते हैं।

✍️ भाजनांग (पात्रांग) कल्पवृक्ष
भाजनांग जाति के कल्पवृक्ष सुवर्ण एवं रत्नों से निर्मित कलश, झारी, गागर, चामर आदि बर्तन देते है। अर्थात घर मे प्रयोग होने वाले बर्तनो को देते है।

✍️ भूषणांग कल्पवृक्ष
 इससे अलंकार प्राप्त होते है। भूषणांग जाति के कल्पवृक्ष कंगन, कटिसूत्र, हार, केयूर, मंजीर, कटक, कुंडल, किरीट और मुकुट इत्यादि आभूषणों को प्रदान करते हैं। भोगभूमि की स्त्रीयाँ चौदह और पुरुष सोलह प्रकार के आभूषण धारण करते है।

✍️ पानांग (मद्यांग) कल्पवृक्ष
पानांग जाति के कल्पवृक्ष भोगभूमिजों को मधुर, सुस्वादु, छह रसों से युक्त, प्रशस्त, अतिशीत और तुष्टि एवं पुष्टि को करने वाले, ऐसे 33 प्रकार के पेय द्रव्य को दिया करते हैं। इसी का अपर नाम मद्यांग कल्पवृक्ष भी है।

✍️ भोजनांग (आहारंग) कल्पवृक्ष
भोजनांग जाति के कल्पवृक्ष 16 प्रकार का आहार, 16 प्रकार के व्यंजन, 14 प्रकार के सूप अर्थात दाल आदि, 108 प्रकार के खाद्य पदार्थ, 363 प्रकार के स्वाद्य पदार्थ और 63 प्रकार के रस भेदों को पृथक पृथक दिया करते हैं।

✍️ मालांग (पुष्पांग) कल्पवृक्ष
मालांग जाति के कल्पवृक्ष वल्ली, तरु, गुच्छ और लताओं से उत्पन्न हुए 16000 भेद रूप पुष्पों की विविध मालाओ को देते हैं।


✍️ तेजांग (ज्योतिरांग) कल्पवृक्ष 
तेजांग जाति के कल्पवृक्ष करोड़ों सूर्यों की किरणों के समान होते हुए नक्षत्र, चंद्र और सूर्यादिक की कांति का संहरण करते हैं। इनके वृक्षो के प्रकाश के कारण ही भोगभूमि मे कभी अंधेरा नही होता, रात नही होती है।

✍️ आलयांग (गृहांग) कल्पवृक्ष 
आलयांग जाति के कल्पवृक्ष, स्वस्तिक, नंद्यावर्त इत्यादिक 16 प्रकार के रमणीय दिव्य भवन दिया करते हैं।

✍️ वस्त्रांग कल्पवृक्ष
वस्त्रांग जाति के कल्पवृक्ष उत्तम क्षौमादि वस्त्र तथा अन्य मन और नयनों को आनंदित करने वाले नाना प्रकार के वस्त्रादि देते है। सभी जीवो को अपने अपने नाप के वस्त्र मिलतें है। 

✍️ दीपांग कल्पवृक्ष
दीपांग जाति के कल्पवृक्ष प्रासादों में शाखा, प्रवाल, कपोल, फल, फूल, पत्र और अंकुरादि के द्वारा जलते हुए दीपकों के समान प्रकाश देते हैं।

♨️विशेष-
◆ दीपांग और तेजांग मे अंतर– तेजांग का प्रकाश तो सूर्य चन्द्र आदि जैसा प्रकाश होता है तथा दीपांग मे दीपको जैसा सुनहारी प्रकाश होता है।  
◆पानांग और मद्यांग का एक ही होना–
पानांग जाति के कल्पवृक्ष को मद्यांग भी कहते हैं। ये वृक्ष फैलती हुई सुगंधी से युक्त तथा अमृत के समान मीठे मधु-मैरेय, सीधु, अरिष्ट और आसव आदि अनेक प्रकार के रस देते हैं। कामोद्दीपन की समानता होने से शीघ्र ही इन मधु आदि को उपचार से मद्य कहते हैं। वास्तव में ये वृक्षों के एक प्रकार के रस हैं जिन्हें भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले आर्य पुरुष सेवन करते हैं। मद्यपायी लोग जिस मद्य का पान करते हैं, वह नशा करने वाला और अंतःकरण को मोहित करने वाला है, इसलिए आर्य पुरुषों के लिए सर्वथा त्याज्य है।
*(महापुराण ०९/३९-४८)*
🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦
   ।। जिनवाणी माता की जय ।।
।। आचार्य भारतभूषणाय नम : ।।


No comments:

Post a Comment

7. चौबीस ठाणा में मनुष्यगति मार्गणा

*✍️ मनुष्यगति में चौबीस ठाणा* https://youtu.be/zC4edAGojCs?si=w9wU8fxsCnEIxFEt 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 जिनके मनुष्य गति नामकर्म का उदय पाया जाता ...