कुलकर उन बुद्धिमान लोगों को कहते है जो लोगों को जीवन निर्वाह के श्रमसाध्य को करना सिखाते है। आर्य पुरुषों को कुल की भाँति इकट्ठे रहने का उपदेश देने से कुलकर कहलाते है। प्रजा के जीवन का उपाय जानने से मनु तथा युग के आदि में होने से युगादि पुरुष भी कहे जाते है।
अवसर्पिणी के तृतीय काल में पल्य का आठवा भाग शेष रहने पर कुलकर उत्पन्न होते है। ये सभी विदेह क्षेत्र मे सत्पात्र दान से मनुष्यायु बंध कर क्षायिक होकर कुलकर बनकर उत्पन्न हुए। ये जाति स्मरण और अवधिज्ञान सहित थे। अभी हम अवसर्पिणी काल मे हुए 14 कुलकरो के बारे मे जानेगे।
◆01) प्रतिश्रुति कुलकर की ऊँचाई 1800 धनुष, आयु पल्य का दसवा भाग, वर्ण स्वर्ण था
भोगभूमि के अंत मे जब ज्योतिरांग कल्पवृक्ष का प्रकाश कम होने लगा। सूर्य चन्द्र दिखने से लोगो के मन मे उत्पन्न भय को दूर करने वाले प्रतिश्रुति जी थे
◆02) सन्मति कुलकर की ऊँचाई 1300 धनुष आयु पल्य का सौवा भाग वर्ण स्वर्ण था।
कुछ काल बाद दिपांग कल्पवृक्षो का भी प्रकाश कम होने लगा था। तब सूर्य चन्द्र के साथ तारे भी दिखाई देने से लोगो के मन मे उत्पन्न भय का निवारण सन्मति जी ने किया ।
◆03) क्षेमंकर कुलकर की ऊँचाई 800 धनुष आयु पल्य का हजार वा भाग वर्ण स्वर्ण था।
कुछ काल बाद पशु क्रुर होने लगे उनके उत्पन्न शब्दो को सुनकर प्रजा मे उत्पन्न भय का निवारण क्षेमंकर कुलकर ने किया। इन्होने घरेलू और जंगली जानवरो का अंतर भी बताया ।
◆04) क्षेमंधर कुलकर की ऊँचाई 775 धनुष आयु पल्य का दस हजार वा भाग स्वर्ण वर्ण था ।
आगे चलकर पशु ओर भी क्रुर होने लगे, उत्पात मचाने लगे, मनुष्यो को भी परेशान करने लगे। क्षेमंधर जी ने जानवरो को भगाने के लिए लकडी, पत्थर आदि के हथियार उपयोग करके उन्हे भगाना सिखाया ।
◆05) सीमंकर कुलकर की ऊँचाई 750 धनुष, आयु पल्य का एक लाख वा भाग, वर्ण स्वर्ण था।
इस समय तक कल्पवृक्ष और उनके द्वारा मिलने वाले फल अल्प होने लगे जिससे लोगो मे झगड़ा होने लगा। यह देखकर सीमंकर जी ने वचनो से कल्पवृक्षो की सीमा निर्धारित की, सीमा निर्धारण के कारण ही सीमंकर नाम पड गया।
◆06) सीमंधर कुलकर की ऊँचाई 725 धनुष, आयु पल्य का दस लाख वा भाग, वर्ण स्वर्ण था।
कुछ समय बाद कल्पवृक्षो की वचनो द्वारा सीमा के बाद भी लोगों मे तीव्र झगडे होने लगे। सीमंधर जी ने झाडी आदि चिन्हो के द्वारा कल्पवृक्षो के स्वामित्व का निर्धारण कर दिया।
◆07) विमलवाहन कुलकर की ऊँचाई 700 धनुष, आयु पल्य का एक करोड वा भाग, वर्ण स्वर्ण था
इन्होने घरेलू जानवरो घोडे, हाथी, गाय आदि की सेवाए कैसे ली जाए यह बताया।
◆08) चक्षुष्मान कुलकर की ऊँचाई 675 धनुष, आयु पल्य का दस करोड वा भाग, वर्ण श्याम था
चक्षुष्मान जी से पहले संतान उत्पन्न होते ही माता पिता की मृत्यु होती थी। इनके समय में संतान की उत्पत्ती के कुछ क्षण भर बाद माता-पिता का मरण होने लगा। संतान का मुख देखने से उत्पन्न भय का निवारण करने के कारण चक्षुष्मान कहलाए।
◆09) यशस्वी कुलकर की ऊँचाई 650 धनुष, आयु पल्य का सौ करोड वा भाग, वर्ण श्याम था
इनके समय माता-पिता कुछ अधिक समय तक जीवित रहने लगे। माता-पिता द्वारा संतान को आशीर्वाद देने, नाम संस्कार आदि की शिक्षा देने से यशस्वी जी कहलाए।
◆10)अभिचन्द्र कुलकर की ऊँचाई 625 धनुष, आयु पल्य का एक हजार करोड भाग वर्ण श्याम था
पुत्र उत्पत्ति के कुछ दिनो बाद तक माता पिता जीवित रहने लगे। अभिचन्द्र कुलकर ने माता-पिता द्वारा बालको को चन्द्रादि दिखाकर क्रीड़ा कराने की शिक्षा दी जिससे वे अभिचन्द्र जी कहलाए।
◆11) चंद्राभ कुलकर के ऊँचाई 600 धनुष, आयु पल्य का दस हजार करोड वा भाग, वर्ण धवल था
पुत्र उत्पत्ती के बहुत काल तक माता-पिता जीवित रहने, शीत वायु चलने लगी थी। चंद्राभ जी ने शीत वायु के भय का निवारण सुर्य की किरणों द्वारा करने की शिक्षा दी।
◆12) मरुदेव कुलकर की ऊँचाई 575 धनुष, आयु पल्य का एक लाख करोड वा भाग, वर्ण स्वर्ण था
इस समय तक मेघ, वर्षा, नदी, पर्वत, बिजली आदि भी दिखने लगे थे। मरुदेव जी ने नदी पार करने के लिए नाव व छातो की प्रयोग विधि तथा पर्वतादि पर चढने की शिक्षा दी।
◆13) प्रसेनजित कुलकर की ऊँचाई 550 धनुष, आयु पल्य का दस लाख करोड भाग धवल वर्ण था
प्रसेन अर्थात झिल्ली (जरायु पटल) इस समय तक संतान झिल्ली में एक-एक करके पैदा होने लगी थी। इससे पहले संतान झिल्ली में लिपटे नही होती थी। प्रसेनजित जी ने ही झिल्ली को छेदने का उपाय बतया। सबसे पहले अकेले नाभिराय जी ही उत्पन्न हुए थे।
◆14) नाभिराय कुलकर के शरीर की ऊँचाई 525 धनुष, आयु एक पूर्व कोटी और वर्ण स्वर्ण था
कल्पवृक्षो का अत्यन्त अभाव होने से कौन सा फल औषधी रुप, कौन सा फल भोजन योग्य है इसका उपदेश नाभिराय जी ने दिया। उत्पन्न संतान की नाभी के नाल को छेदने का उपाय बताने के कारण नाभिराय कहलाए।
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● बाद मे ऋषभदेव तीर्थंकर हुए उनको भी उपचार से कुलकर माना जाता है। इन्होंने नगर ग्राम आदि की रचना करना बताया, लौकिक शास्त्र सिखाया, असि मसि आदि षट शिक्षाओ का उपदेश दिया, दया प्रधान धर्म की स्थापना की।
● भरत जी ने वर्ण व्यवस्था की स्थापना की, ये भी उपचार से कुलकर माने जाते है।
👉दण्ड व्यवस्था
प्रारम्भ के पाँच कुलकरो के समय हा कहकर दण्ड दिया जाता था, 6 से 10 वे कुलकर के समय हा मा कहकर दण्ड दिया जाता था। 11 से 14 वे कुलकर मे हा मा धिक कहकर दण्ड देने की व्यवस्था थी
✍️भविष्यकालीन कुलकर
भविष्य में उत्सर्पिणी के दु:षमा दूसरे काल के अंत: मे 1000 वर्ष बाकी रहने पर इसी प्रकार सोलह युगादिपुरुष होंगे –
कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज, कनकपुंगव, नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनध्वज, नलिनपुंगव, पदम, पदमप्रभ, पदमराज, पदमध्वज, पद्मपुंगव, महापदम
●विशेष:- त्रिलोकसार जी गाथा 871 मे सोलह कुलकर का तथा तिलोयपण्णत्ति मे चौदह कुलकर का वर्णन है। पदम और महापदम ये दो कुलकर का वर्णन त्रिलोकसार जी मे ज्यादा है।
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।। जिनवाणी माता की जय ।।
।। आचार्य भारतभूषणाय नम : ।।
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