01. चौबीस ठाणा के नाम, उनके उत्तर भेद*
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https://youtu.be/WiAu4Pj-CQs?si=UgggOsI-kLkSu-kJ
*चौबीस = चौबीस, ठाणा = स्थान*
*जहाँ चौबीस स्थानो मे जीव का विशेष वर्णन किया गया है उसे चौबीस ठाणा कहते है।*
बोधिदुर्लभ भावना का चिंतन करने के लिए चौबीस ठाणा का अध्ययन करना चाहिए। अपने उपयोग के चौबीस स्थान के उत्तर भेदो मे लगाना चाहिए और विचार करना चहिए कि किस-किस स्थान पर रत्नत्रय प्राप्त किया जा सकता है। हम कितने कितने स्थानो को छोड़कर यहाँ आ गये है। सब कुछ अनुकुलता मिल जाने पर भी यदि हम रत्नत्रय धारण नही कर पाये तो सबकुछ व्यर्थ है। लोक भावना भाने के लिए भी चौबीस ठाणा समझना चाहिए।
*✍️चौबीस ठाणा (स्थान) के नाम :-
गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यक्त्व, सम्यक्तव, संज्ञी, आहार, गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, उपयोग, ध्यान, आस्रव, जाति और कुल।
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*✍️चौबीस ठाणा (स्थानो) के उत्तर भेद :-
*०१) गति –०४*
नरक गति, तिर्यंचगति, मनुष्य गति और देवगति।
*०२) इन्द्रिय –०५*
एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय।
*०३) काय –०६*
पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय।
*०४) योग –१५*
*मनोयोग ०४* सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, उभय मनोयोग, अनुभय मनोयोग,
*वचनयोग ०४* सत्य वचनयोग, असत्य वचनयोग, उभय वचनयोग, अनुभय वचनयोग,
*काययोग ०७* औदारिक-औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियिक-वैक्रियिक मिश्रकाययोग, आहारक - आहारकमिश्र काययोग, कार्मण काययोग
*०५) वेद –०३*
स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद।
*०६) कषाय –२५*
*१६ कषाय*
*०४ अनन्तानुबन्धी* क्रोध-मान-माया-लोभ
*०४ अप्रत्याख्यानावरण* क्रोध-मान-माया-लोभ
*०४ प्रत्याख्यानावरण* क्रोध-मान-माया-लोभ
*०४ संज्वलन* क्रोध-मान-माया-लोभ
*०९ नोकषाय* हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद।
*०७) ज्ञान –०८*
*कुज्ञान ०३* कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान, कुअवधिज्ञान
*सुज्ञान ०५* मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान
*०८) संयम –०७*
असंयम, संयमासंयम, सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म साम्पराय, यथाख्यात,
*०९) दर्शन –०४*
चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन।
*१०) लेश्या –०६*
कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पदम और शुक्ल लेश्या।
*११) भव्यक्त्व –०२* भव्य और अभव्य।
*१२) सम्यक्त्व –०६*
मिथ्यात्व,सासादन,मिश्र,उपशम,क्षयोपशम, क्षायिक
*१३) संज्ञी –०२* संज्ञी और असंज्ञी।
*१४) आहारक –०२* आहारक और अनाहारक।
*१५) गुणस्थान –१४*
मिथ्यात्व, सासादन, सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र), अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्य साम्पराय, उपशांतकषाय, क्षीणकषाय, सयोगकेवली जिन, अयोगकेवली जिन।
*१६) जीवसमास–१९*
पृथ्वीकायिक सूक्ष्म-बादर, जलकायिक सूक्ष्म-बादर, अग्निकायिक सूक्ष्म-बादर, वायुकायिक सूक्ष्म-बादर, नित्यनिगोद सूक्ष्म-बादर, इतरनिगोद सूक्ष्म-बादर, सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय।
*१७) पर्याप्ति –०६*
आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा तथा मन:पर्याप्ति।
*१८) प्राण –१०*
*इन्द्रिय ०५* स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण
*बल ०३* कायबल, वचन बल और मनोबल प्राण
आयु प्राण और श्वासोच्छवास प्राण
*१९) संज्ञा –०४*
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग –१२*
*ज्ञानोपयोग- ०८* मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञानोपयोग + कुमति, कुश्रुत कुअवधि
*दर्शनोपयोग ०४* चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन तथा केवलदर्शनोपयोग
*२१) ध्यान –१६*
*आर्तध्यान ०४* इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, वेदना और निदान।
*रौद्रध्यान ०४* हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी।
*धर्मध्यान ०४* आज्ञाविचय,अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय।
*शुक्ल ०४* पृथक्त्ववितर्क वीचार, एकत्ववितर्क अवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवृति।
*२२) आस्रव –५७*
*मिथ्यात्व०५* विपरीत,एकान्त,विनय,संशय,अज्ञान
*अविरति १२* ०५ इन्द्रिय और मन को वश में नही करना तथा षट्काय के जीवों की रक्षा नहीं करना
*कषाय २५* १६ अनन्तानुबन्धीआदि ०९नोकषाय
*योग १५* मनोयोग ०४ वचनयोग ०४ काययोग ०७
*२३) जाति –८४ लाख*
*नित्यनिगोद* ०७ लाख
*इतरनिगोद* ०७ लाख
*पृथ्वीकायिक* ०७ लाख
*जलकायिक* ०७ लाख
*अग्निकायिक* ०७ लाख
*वायुकायिक* ०७ लाख
*वनस्पतिकायिक* १० लाख
*द्वीन्द्रिय* ०२ लाख
*त्रीन्द्रिय* ०२ लाख,
*चतुरिन्द्रिय* ०२ लाख
*पंचेन्द्रिय तिर्यंच* ०४ लाख,
*नारकी* ०४ लाख
*देव* ०४ लाख
*मनुष्य* १४ लाख
*२४) कुल–१९९.५ लाख करोड*
*पृथ्वीकायिक* २२ लाख करोड़,
*जलकायिक* ०७ लाख करोड़,
*अग्निकायिक* ०३ लाख करोड़,
*वायुकायिक* ०७ लाख करोड़,
*वनस्पतिकायिक* २८ लाख करोड़,
*द्वीन्द्रिय* ०७ लाख करोड़,
*त्रीन्द्रिय* ०८ लाख करोड़,
*चतुरिन्द्रिय* ०९ लाख करोड़,
*जलचर* १२.५ लाख करोड़,
*थलचर* १९ लाख करोड़,
*नभचर* १२ लाख करोड़,
*नारकी* २५ लाख करोड़,
*देव* २६ लाख करोड़,
*मनुष्य* १४ लाख करोड़
*कुल जोड=* १९९-१/२ लाख करोड़ कुल।
*जीवकाण्ड जी गाथा ११६ अनुसार मनुष्यों के १२ लाख करोड़ कुल बताये हैं इस अपेक्षा से कुल १९७-१/२ लाख करोड़ कुल होते हैं।*
*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन )*
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