Wednesday, 8 January 2025

02) 03) चौबीस ठाणा मे गुणस्थान भाग

 *✍️ 02) चौबीस ठाणा मे गुणस्थान भाग 01*

https://youtu.be/mFDRM4c43Es?si=rvdDLNTEgD9foxdO

*✍️ 03) चौबीस ठाणा मे गुणस्थान भाग 02*

https://youtu.be/jgxszHqFu10?si=s7_GYnrQ-IzjUxqf

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जहाँ चौबीस स्थानो मे जीव का विशेष वर्णन किया गया है उसे चौबीस ठाणा कहते है। 

गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यक्त्व, सम्यक्तव, संज्ञी, आहार, गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, उपयोग, ध्यान, आस्रव, जाति और कुल ये चौबीस ठाणा के चौबीस भेद है। यहाँ इन चौबीस स्थानो के उत्तर भेदो मे गुणस्थान को जानते है। 


*✍️ गति – 04*

नरक गति – 01, 02, 03, 04 वा गुणस्थान 

तिर्यंचगति – 01, 02, 03, 04, 05 वा गुणस्थान 

मनुष्य गति – 01 से 14 तक के सभी गुणस्थान 

देवगति – 01, 02, 03, 04 गुणस्थान 


*✍️ इन्द्रिय – 05*

एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवो मे 01 गुणस्थान, पंचेन्द्रिय जीवो मे 01 से 14 तक गुणस्थान

👉  नोट एक, दो, तीन और चार इन्द्रिय जीवो के 02 गुणस्थान किन्ही आचार्यो के अनुसार होता है। यह 02 गुणस्थान उत्पन्न नही करते बल्कि दूसरे गुणस्थान से मरण करके आने के समय होता है। यह कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छह आवली तक होता है। 


*✍️ काय – 06*

पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक में 01 गुणस्थान, त्रसकायिक में 01 से 14 तक गुणस्थान  

◆  नोट–औपशमिक सम्यक्तव वाले जीव अनंतानुबंधी के उदय से सासादन मे आने के बाद मरण होने पर पृथ्वीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक मे जन्म लेने के कारण इन तीनो मे दूसरा गुणस्थान भी होता है। 


*✍️ योग – 15*

सत्य-अनुभय मनोयोग में  01 से 13 तक गुणस्थान 

असत्य-उभय मनोयोग में  01 से 12 तक गुणस्थान 

सत्य-अनुभय वचनयोग मे 01 से 13 तक गुणस्थान 

असत्य-उभय वचनयोग में 01 से 12 तक गुणस्थान 

औदारिक काययोग मे       01 से 13 तक गुणस्थान 

औदारिक मिश्रकाययोग  01, 02, 4, 13 गुणस्थान  

वैक्रियिक काययोग में  01, 02, 03, 04  गुणस्थान 

वैक्रियिक मिश्रकाययोग में  01, 02, 04  गुणस्थान 

आहारक-आहारकमिश्र काययोग में   06 गुणस्थान 

कार्मण काययोग     01, 02, 04, 13 वा गुणस्थान 

● उभय - सत्य भी असत्य भी, अनुभय- ना सत्य ना असत्य 


*✍️ वेद – 03 *

स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद में  01से09 गुणस्थान 

◆ नोट  यहा वेद भाववेद की अपेक्षा से है। 


*✍️ कषाय – 25 (भाववेद की अपेक्षा)*

अनन्तानुबन्धी चतुष्क में  01 – 02  गुणस्थान, अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क 01 से 04  गुणस्थान 

प्रत्याख्यानावरण क्रोध-माया-लोभ 01 से 05 तक प्रत्याख्यानावरण मान 01 से 04 गुणस्थान 

संज्वलन क्रोध, मान, माया 01से 09 तक संज्वलन लोभ में  01 से 10 तक गुणस्थान 

हास्य-रति-अरति मे 01 से 08 तक शोक-भय-जुगुप्सा 01 से 08 तक गुणस्थान 

स्त्रीवेद-पुरुषवेद-नपुंसकवेद  01 से 09 गुणस्थान 

◆ नोट - पहले गुणस्थान मे अनन्तानुबन्धी आदि चारो कषाय का उदय है। चौथे गुणस्थान मे तीन कषाय (अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन) का उदय हैं। पाचवे गुणस्थान मे दो कषाय प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन का उदय है। छठे से नवम गुणस्थान तक संज्वलन कषाय का उदय है। दसवे गुणस्थान मे सूक्ष्म लोभ का उदय है।  


*✍️ ज्ञान – 08*

कुमति-कुश्रुत-कुअवधिज्ञान में 01 – 02 गुणस्थान 

मतिज्ञान-श्रुतज्ञान-अवधिज्ञान 04 से 12 गुणस्थान 

मन:पर्यय ज्ञान  06 से 12 तक,  केवलज्ञान  13, 14  गुणस्थान में तथा सिद्धो मे 


*✍️ संयम – 07*

असंयम  01 से 04 तक गुणस्थान मे, संयमासंयम  05 वा तक गुणस्थान मे, सामायिक 06 से 09 तक गुणस्थान,  छेदोपस्थापना 06 से 09 तक गुणस्थान मे, परिहार विशुद्धि 06 - 07 गुणस्थान मे, सूक्ष्मसाम्पराय 10 वे गुणस्थान, यथाख्यात संयम  11 से 14 तक गुणस्थान मे है। 


*✍️ दर्शन – 04*

चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन 01 से 12 गुणस्थान, अवधिदर्शन 04 से 12 गुणस्थान, केवलदर्शन 13, 14 वा ग़ुणस्थान तथा सिद्ध भगवान में भी 

◆  नोट  मतांतर के अनुसार किन्ही आचार्यो ने अवधिदर्शन को 03 गुणस्थान मे भी लिया है तथा किन्ही आचार्यो ने 01 गुणस्थान में भी माना है। उनका कहना है कि कुअवधिदर्शन 01 गुणस्थान मे होता है उसके लिए उससे पहले अवधिदर्शन होना जरुरी है। 


*✍️ लेश्या – 06*

कृष्ण, नील, कापोत 01 से 04  तक, पीत, पदम 01 से 07  तक, शुक्ल लेश्या  01 से 13  गुणस्थान तक मे होती है।  यहा भाव लेश्या की अपेक्षा से वर्णन है। 


*✍️ भव्यक्त्व – 02*

भव्य जीव 01 से 14  गुणस्थान में, अभव्य जीव 01 गुणस्थान तथा सिद्ध भगवान ना भव्य ना अभव्य है। 


*✍️ सम्यक्त्व – 06*

मिथ्यात्व 01 गुणस्थान, सासादन 02 गुणस्थान, मिश्र 03 गुणस्थान, उपशम (प्रथमोपशम) 04 से 07 तक, द्वितीयोपशम 04 से 11 तक,  क्षयोपशम  04 से 07 तक, क्षायिक 04 से 14 तक सिद्धो के भी क्षायिक सम्यक्त्व होता है।  

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*✍️ संज्ञी – 02*

असंज्ञी जीव 01 गुणस्थान, संज्ञी जीव में 01 से 12 तक, 13 व 14 वे गुणस्थान वाले अनुसंज्ञी कहलाते है। 


*✍️ आहारक – 02*

आहारक जीव 01 से 13 तक, अनाहारक 01, 02, 04, 13, 14 वा गुणस्थान होते है। 13 वे गुणस्थान मे अनाहारक अवस्था केवली समुद्धात के समय है। 


*✍️ गुणस्थान – 14*

मिथ्यात्व, सासादन, सम्यग्मिथ्यात्व, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्य साम्पराय, उपशांतकषाय, क्षीणकषाय, सयोगकेवली जिन, अयोगकेवली जिन। 

 *(सभी गुणस्थानो का स्वकीय गुणस्थान है)*


*✍️ जीवसमास – 19*

जीवसमास के 14 भेद, 19 भेद, 57 भेद, 98 भेद और 406 भेद भी होते है। 

पृथ्वीकायिक सूक्ष्म-बादर, जलकायिक सूक्ष्म-बादर, अग्निकायिक सूक्ष्म-बादर, वायुकायिक सूक्ष्म-बादर, नित्यनिगोद सूक्ष्म-बादर, इतरनिगोद सूक्ष्म-बादर, सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति, अप्रतिष्ठित प्रत्येक, वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय। 

*प्रारम्भ के 18 भेदो मे 01 गुणस्थान, संज्ञी पंचेन्द्रिय मे 01 से 14 तक गुणस्थान होते है।*

◆  नोट कुछ आचार्यो अनुसार बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक मे 02 गुणस्थान भी माना है। 

सप्रतिष्ठित प्रत्येक, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति मे भी 02 गुणस्थान हो सकता है। दो, तीन, चार और असंज्ञी पंचेन्द्रिय मे भी 02 गुणस्थान हो सकता है। 


*✍️ पर्याप्ति – 06*

एकेन्द्रिय जीव के 04 पर्याप्ति, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के 05 पर्याप्ति तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय के 06 पर्याप्ति होती हैं। 

आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा पर्याप्ति मे 01 गुणस्थान, आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा, मन:पर्याप्ति मे 01 से 14 तक गुणस्थान होते है। 


*✍️ प्राण – 10*

एकेन्द्रिय मे 04 प्राण, द्वीन्द्रिय के 06 प्राण, त्रीन्द्रिय मे 07 प्राण, चतुरिन्द्रिय मे 08 प्राण, असंज्ञी पंचेन्द्रिय मे 09 प्राण, संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के 10 प्राण होते है। 

स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण मे 01 से 12 तक गुणस्थान, मनोबल प्राण 01 से 12 तक, वचनबल प्राण 01 से 13 तक, कायबलप्राण 01 से 13 तक, श्वासोच्छवास प्राण 01 से 13 तक, आयु प्राण  01 से 14 तक गुणस्थानो में है। 


*✍️ संज्ञा – 04*

आहार संज्ञा  01 से 06  तक, भयसंज्ञा  01 से 08 तक, मैथुनसंज्ञा  01 से 09 तक, परिग्रह संज्ञा 01 से 10 गुणस्थान तक होती हैं। 


*✍️ उपयोग – 12*

कुमति, कुश्रुत, कुअवधि  01-02 गुणस्थान में, मति, श्रुत, अवधिज्ञान 04 से 12 गुणस्थान में, मन:पर्यय ज्ञान  06 से 12  गुणस्थान में, केवलज्ञान  13 - 14 गुणस्थान में होता है। 

चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन  01 से 12 गुणस्थान में, अवधिदर्शन  04 से 12 गुणस्थान (03 से 12 मे भी), केवलदर्शनोपयोग 13–14 वे गुणस्थान में है। 


*✍️ ध्यान – 16*

इष्टवियोगज-अनिष्टसंयोगज-वेदना– 01 से 06

निदान आर्तध्यान –              01 से 05 गुणस्थान 

हिंसानन्दी, मृषानन्दी –          01 से 05 गुणस्थान 

चौर्यानन्दी, परिग्रहानन्दी –      01 से 05 गुणस्थान

आज्ञाविचय, अपायविचय –   04 से 07 गुणस्थान 

विपाकविचय –                    05 से 07 गुणस्थान 

संस्थानविचय –                    06 – 07 गुणस्थान 

पृथक्त्व वितर्क वीचार –         08 से 11 गुणस्थान 

एकत्व वितर्क अवीचार –        12 वा गुणस्थान 

सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति –           13 वा गुणस्थान 

व्युपरतक्रिया निवृति –           14 वा गुणस्थान 


*✍️ आस्रव – 57*

◆  मिथ्यात्व 05 –विपरीत, एकान्त, विनय, संशय अज्ञान  01 गुणस्थान 

◆ अविरति 12 –पाँचो स्थावरो की रक्षा नही करना– 01 से 05 तक, त्रस जीवो की रक्षा नही करना – 01 से 04 तक, पाँचो इन्द्रियो की रक्षा नही करना– 01 से 05 तक, मन को वश नही करना – 01 से 05 तक गुणस्थान हैं। 

◆  कषाय 25 – 16 कषाय, 9 नौकषाय

(कषाय के गुणस्थानो का वर्णन ऊपर हो गया है) 

◆ योग 15 - मनोयोग-4, वचनयोग-4, काययोग-7

(योग के गुणस्थानो का वर्णन ऊपर हो गया है) 


*✍️ जाति – 84 लाख*

नित्यनिगोद- 07 लाख, इतरनिगोद - 07 लाख, पृथ्वीकायिक- 07 लाख, जलकायिक- 07 लाख, अग्निकायिक- 07 लाख, वायुकायिक - 07 लाख,  वनस्पतिकायिक -10 लाख, द्वीन्द्रिय - 02 लाख,  त्रीन्द्रिय - 02 लाख, चतुरिन्द्रिय - 02 लाख जाति

   (इन 19 प्रकार की जातियो मे 01 गुणस्थान है) 

पंचेन्द्रिय तिर्यंच 04 लाख जाति–01 से 05 गुणस्थान, नारकी 04 लाख जाति– 01 से 04 गुणस्थान, देव 04  लाख जाति– 01 से 04 गुणस्थान, मनुष्य 14 लाख जाति– 01 से 14 गुणस्थान होते है। 


*✍️ कुल– 199-1/2  लाख करोड*

पृथ्वीकायिक  22 लाख करोड़,  01गुणस्थान, जलकायिक    07 लाख करोड़, 01गुणस्थान, अग्निकायिक  03 लाख करोड़,  01गुणस्थान, वायुकायिक    07 लाख करोड़,  01 गुणस्थान, वनस्पतिकाय   28 लाख करोड़, 01 गुणस्थान, द्वीन्द्रिय  07 लाख करोड़,  01 गुणस्थान, त्रीन्द्रिय           08 लाख करोड़,  01 गुणस्थान, चतुरिन्द्रिय       09 लाख करोड़,  01गुणस्थान, जलचर 12-1/2 लाख करोड़,  01 से 05 गुणस्थान,  थलचर 19 लाख करोड़,  01 से 05 तक गुणस्थान , नभचर 12 लाख करोड़,  01 से 05 तक गुणस्थान, नारकी 25 लाख करोड़,  01 से 04 तक गुणस्थान, देव 26 लाख करोड़,  01 से 04 तक गुणस्थान, मनुष्य 14 लाख करोड़   01 से 14 तक गुणस्थान 

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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*


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