Sunday, 29 December 2024

वेद मार्गणा - 24 ठाणा

*वेद मार्गणा (24 ठाणा)*
 https://youtu.be/ywhc9cZCczw?si=5Dknym48vcVZ22Wb
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

वेद कर्म के उदय से होने वाले भाव को वेद कहते हैं। *(धवला 1/141)*
∆ मैथुन की अभिलाषा को वेद कहते है।
∆ आत्मा की चैतन्य रूप पर्याय में मैथुन रूप चित्त विक्षेप के उत्पन्न होने को वेद कहते है। 
*(गोम्मटसार जीव काण्ड 272)*
◆ वेद चारित्र मोहनीय कर्म का भेद है और लिंग शरीर नाम कर्म के उदय से होने वाली शारीरीक रचना है, शरीर के चिन्ह विशेष है पूरी तरह पुदग्लमय है। 
वेद जीव के भाव रुप है इसलिए इसे चेतनमय भी कहते है क्योकी वेद रुप भाव जीव के ही होते है।
∆ वेद के आधार से जीवो को खोजना वेद मार्गणा है।

*✍️ वेदमार्गणा के भेद :-*
∆ वेद दो प्रकार के हैं - द्रव्य वेद, भाव वेद
∆ वेद मार्गणा तीन प्रकार की है - स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद *(बृहद द्रव्यसंग्रह 13 टीका)*
∆ वेद मार्गणा के अनुवाद से स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद तथा अपगत वेद वाले जीव होते *(धवला 1/340)*

*✍️भाववेद :- (आत्मा का परिणाम भाववेद)*
नपुंसक वेद नोकषाय (चारित्र मोहनीय) कर्म के उदय से जीव में तीव्र मोह के कारण उत्पन्न स्त्रीत्व, पुरुषत्व व नपुंसकत्व इन तीनों में एक-दूसरे की अभिलाषा लक्षण रुप भाव पारिणाम भाववेद है। *(राज वार्तिक 2/6)*
*∆ भाववेद तीन होते है– स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। (यह जीव की पर्याय है)।*

*✍️ द्रव्य वेद :- (शरीर के बाहय चिन्ह)*
शरीर नामकर्म के उदय से जीव में पाये जाने वाले स्त्रीत्व, पुरुषत्व व नपुंसकत्व शरीर का आकार होना, मूछ, दाढी, स्तन, योनी आदि चिन्ह सहित या राहित शरीर का होना द्रव्यवेद है।  *इसके तीन भेद है– स्त्रीलिंग, पुरुषलिंग, नपुंसक लिगं (यह पुदगल की पर्याय है)।*

👉 वेद चारित्र मोहनीय कर्म का भेद है, घातिकर्म हैं तथा लिंग शरीर नामकर्म के उदय होने वाली शारीरिक रचना है अघातिया कर्म है।
👉 द्रव्यवेद जन्म पर्यंत नहीं बदलता पर भाववेद कषाय विशेष होने के कारण क्षणमात्र में बदल सकता है । द्रव्य वेद से पुरुष को ही मुक्ति संभव है पर भाववेद से तीनों वेद में मोक्ष हो सकता है ।

*✍️ स्त्रीवेद :-*
स्त्रीवेद नामक नोकषाय के उदय से होने वाली जीव की  अवस्था विशेष को स्त्रीवेद कहते है। या जिसके उदय से पुरुष के साथ रमने के भाव हों वह स्त्रीवेद है।   *(गोम्मटसार जीव काण्ड 271)*

*✍️ पुरुषवेद :-*
पुरुषवेद नोकषाय के उदय के निमित्त से स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा होना पुरूषवेद है। *(गोम्मटसार जीव काण्ड 271)*
∆ स्त्री में अभिलाषा रूप मैथुन संज्ञा से आक्रान्त होना पुरुषवेद है।

*✍️ नपुंसकवेद :-*
नुपंसकवेद नामक नोकषाय के उदय से जीव के स्त्री और पुरुष की अभिलाषा रूप तीव्र कामवेदना उत्पन्न होती है वह नपुंसकवेद है। 
∆ जिसके उदय से स्त्री तथा पुरुष दोनों के साथ रमने के भाव हों वह नपुसक वेद है। *(गोम्मटसार जीव काण्ड 271)*

*✍️ अपगतवेद :-  (अवेदी, वेद रहित)*
जिसका वेद बीत चुका है, नष्ट हो गया है, जो पहले वेद मे थे अब नही है वे अपगतवेदी है।
👉 वेद अपने मे ही वेदना है सुख नही है आचार्यो ने वेद की तुलना अग्नि से कि है।

*✍️ वेद मार्गणा में ग्रहण करने योग वेद :-*
वेद मार्गणा में भाववेद को ग्रहण करना चाहिए क्योंकि यदि यहाँ द्रव्यवेद से प्रयोजन होता तो मनुष्य स्त्रियों के अपगतवेद स्थान नहीं बन सकता, क्योंकि द्रव्यवेद चौदहवें गुणस्थान् के अन्त तक पाया जाता है। परन्तु अपगत वेद भी होता है। इस प्रकार वचन निर्देश नौवें गुणस्थान के अवेद भाग से किया गया है। 
(जिससे प्रतीत होता है कि यहाँ भाववेद से प्रयोजन है, द्रव्यवेद से नहीं)  *(धवला 2/513)*
वेद मार्गणा की परिभाषा पूर्ण हुई आगे तीनो वेदो और अपगत वेदी में 24 ठाणा का वर्णन होगा
🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦🇬🇦
*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*

No comments:

Post a Comment

7. चौबीस ठाणा में मनुष्यगति मार्गणा

*✍️ मनुष्यगति में चौबीस ठाणा* https://youtu.be/zC4edAGojCs?si=w9wU8fxsCnEIxFEt 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 जिनके मनुष्य गति नामकर्म का उदय पाया जाता ...