*२४) चौबीस ठाणा वैक्रियिक मिश्र काययोग*
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*जहाँ कार्मण काययोग समाप्त होगा उसके अगले ही क्षण से ही मिश्र काययोग प्रारम्भ हो जाता है।*
*०१) गति ०२/०४* नरक, देव
*०२) इन्द्रिय ०१/०५* पंचेन्द्रिय
*०३) काय ०१/०६* त्रसकाय
*०४) योग स्वकीय/१५* वैक्रियकमिश्न काययोग
*०५) वेद ०३/०३* तीनो वेद
स्त्रीवेद, पुरुषवेद देवो के, नपुंसकवेद नारकी के
*०६) कषाय २५/२५* कषाय १६ नोकषाय ०९
*०७) ज्ञान ०५/०८*
कुमति, कुश्रुत, मति, श्रुत, अवधिज्ञान
*०८) संयम ०१/०७* असंयम
*०९) दर्शन ०३/०४* तीन दर्शन
चक्षुदर्शन,अचक्षुदर्शन,अवधिदर्शन
*१०) लेश्या ०६/०६* छहो लेश्या
नारकियो मे ०३ अशुभ, देवो मे ०३ शुभ लेश्या
*११) भव्यक्त्व ०२/०२* भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व ०५/०६* पाँच सम्यक्त्व
मिश्न नहीं होता,औपशमिक मे द्वितीयोपशम होता है
*१३) संज्ञी ०१/०२* संज्ञी
*१४) आहारक ०१/०२* आहारक
*१५) गुणस्थान ०३/१४* ०१, ०२, ०४
*१६) जीवसमास ०१/१९* सैनी पंचेन्द्रिय
*१७) पर्याप्ति ०२/०६* आहार, शरीर पर्याप्ति
*१८) प्राण ०७/१०*
०५ इन्द्रिय प्राण, कायबल, आयु प्राण
*१९) संज्ञा ०४/०४* चारो संज्ञा
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग ०८/१२*
कुमति, कुश्रुत, मति, श्रुत, अवधि,
चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन
*२१) ध्यान १०/१६*
आर्त ०४, रौद्र ०४, धर्म ०२
*२२) आस्रव ४३/५७*
मिथ्यात्व ०५,अविरति १२,कषाय २५, योग स्वकीय
*२३) जाति ०८ लाख/८४ लाख*
नारकी ०४ लाख, देवो ०४ लाख
*२४) कुल-५१ लाख करोड/१९९.५ लाख़ करोड*
नारकी मे २५ लाख करोड, देवो मे २६ लाख करोड
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*प्रश्न ७५) वैक्रियिक मिश्रकाययोग किसे कहते हैं?*
उत्तर- जब तक वैक्रियिक शरीर पूर्ण नहीं होता तब तक उसको वैक्रियिक मिश्र कहते हैं और उसके द्वारा होने वाले योग को, आत्मप्रदेश परिस्पन्दन को वैक्रियिकमिश्र काययोग कहते हैं। *(गो. जी.२३४)*
जब यह जीव मनुष्य या तिर्यंच से मरण करके देव और नरक गति की ओर जाता है, तब विग्रहगति मे कार्मण काययोग होता है तथा अनहारक होता है। जहा जन्म लेना होता है, वहा पहुचने पर आहारक पना शरु हो जाता है जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण ना हो तब तक मिश्नपना रहता है। यहा पर वैक्रियक वर्गणाए औऱ कार्मण वर्गणाए दोनो के मिश्नण से आत्मा के प्रदेशो में कंपन होता है इसलिए इसको वैक्रियक मिश्र काययोग कहते है।
यानि आहारक वर्गणा और कार्मण वर्गणा दोनो के निमित्त से जो आत्मा मे कंपन होगा उसे वैक्रियक मिश्र कहेगे तथा शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने तक रहता है, उसके बाद वैक्रियक काययोग शुरु हो जाता है।
*प्रश्न ७६) वैकियिकमिश्र काययोग में कम-से- कम कितनी कषायें होती हैं?*
उत्तर - वैक्रियिकमिश्र काययोग में कम- से-कम २० कषायें होती हैं- अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन तीनों के क्रोध मान, माया, लोभ। आठ नोकषाय - (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, नपुंसक वेद)।
उपर्युक्त कषायें चतुर्थ गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा कही गयी हैं, इसलिए स्त्रीवेद कम करा है। यहाँ नपुसक वेद सम्यग्दर्शन को लेकर प्रथम नरक में जाने वाले की अपेक्षा कहा गया है अन्यथा सम्यग्दृष्टि मरकर नपुंसक वेद वाला नहीं बनता है ।
*प्रश्न ७७) किन- किन जीवों के वैक्रियिकमिश्र काययोग में अवधिज्ञान होता है?*
उत्तर - जो जीव मनुष्य पर्याय में गुणप्रत्यय अवधिज्ञान प्राप्त करते हैं, वे अनुगामी अवधिज्ञान को लेकर जब नरकगति (बद्धायुष्क क्षायिक सम्यग्दृष्टि वा कृतकृत्य वेदक की अपेक्षा) में जाते हैं तथा मनुष्य-तिर्यंच अनुगामी अवधिज्ञान को लेकर देवगति में जाते हैं तब उनके वैक्रियिकमिश्र काय योग मे स्थित सम्यग्द्रष्टि जीवो के अवधिज्ञान हो सकता है।
*प्रश्न ७८) वैकियिकमिश्र काययोगी अभव्य जीवों के कितनी लेश्याएँ होती हैं?*
उत्तर - वैक्रियिक मिश्र काययोगी अभव्य जीवों के छहों लेश्याएँ होती हैं –
तीन अशुभ लेश्याएँ नारकियों तथा भवनत्रिक की अपेक्षा तथा तीन शुभ लेश्याएँ देवों की अपेक्षा होती हैं। अभव्य जीव के शुक्ल लेश्या भी बन जाती है क्योंकि अभव्य जीव का उत्पाद नवें ग्रैवेयक तक माना गया है।
*प्रश्न ७९) वैक्रियिक मिश्र काययोगी क्षायिक सम्यग्दृष्टि के कितने वेद होते हैं?*
उत्तर - वैक्रियिक मिश्र काययोगी क्षायिक सम्यग्दृष्टि के दो वेद होते हैं – पुरुषवेद और नपुंसक वेद
*पुरुषवेद* वैमानिक देवों की अपेक्षा ।
*नपुंसक वेद* प्रथम नरक की अपेक्षा ।
*प्रश्न ८०) ऐसा कौन सा सम्यक्त्व है जो वैक्रियिक मिश्र काययोग में तो होता है लेकिन औदारिक मिश्र काययोग में नहीं होता है?*
उत्तर - द्वितीयोपशम सम्यक्त्व श्रेणी में अथवा द्वितीयोपशम सम्यक के साथ मरण की अपेक्षा वैक्रियिकमिश्र काययोग में हो सकता है, लेकिन औदारिक मिश्र काययोग में नहीं हो सकता है, क्योंकि कोई भी देव-नारकी द्वितीयोपशम सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर सकता। इसका भी कारण यह है कि द्वितीयोपशम सम्यक्त्व उपशम श्रेणी के सम्मुख मुनिराज के ही होता है। श्रेणी से उतरते समय अन्य गुणस्थानों में भी हो सकता है ।
*प्रश्न ८१) वैक्रियिकमिश्र काययोग में कितने सम्यक्त्व नहीं होते हैं?*
उत्तर - वैक्रियिकमिश्र काययोग में दो सम्यक नहीं होता है- मिश्र और प्रथमोपशम सम्यक्त्व क्योंकि इसमें मरण नहीं होता है।
सासादन सम्यक्त्व एवं द्वितीयोपशम सम्यक्त्व देवो की अपेक्षा वैक्रियिकमिश्र काययोग मे बनते है, नारकी की अपेक्षा से नहीं।
*प्रश्न ८२) किन जीवों के वैक्रियिकमिश्र काययोग में क्षयोपशम सम्यक्त्व पाया जाता है?*
उत्तर - वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले सम्यग्दृष्टि जीव अथवा कृतकृत्य वेदक जीवों के वैक्रियिकमिश्र काययोग में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाया जाता है।
बद्धायुष्क (जिसने नरकायु को बाँध लिया है) ऐसा कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि जब प्रथम नरक में जाता है उसके भी वेदक (क्षायोपशमिक) सम्यक्त्व पाया जाता है।
*प्रश्न ८३) वैक्रियिक मिश्र काययोग में दो धर्मध्यान किस अपेक्षा कहे हैं?*
उत्तर - वैक्रियिक मिश्र काययोग में दो धर्मध्यान – आज्ञाविचय और अपायविचय देवों की अपेक्षा कहे गये हैं, क्योंकि नारकियों के तो एक आज्ञाविचय धर्मध्यान ही होता है।
*प्रश्न ८४) वैक्रियिक मिश्र काययोग में कम-से-कम कितने आस्रव के प्रत्यय हो सकते हैं?*
उत्तर - वैक्रियिकमिश्र काययोग में (सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा) कम-से-कम ३३ आस्रव के प्रत्यय हो सकते हैं- अविरति १२, कषाय २०, योग ०१ (वैक्रियिक मिश्र)।
*(मिथ्यात्व ०५, अनन्तानुबन्धी ०४, स्त्रीवेद तथा १४ योग नहीं होते हैं।)*
*प्रश्न ८५) वैक्रियिकमिश्र काययोगी के दूसरे गुणस्थान में कितनी जातियाँ होती हैं?*
उत्तर - दूसरे गुणस्थान वाले वैक्रियिकमिश्र काययोगी के चार लाख जातियाँ होती हैं, क्योंकि सासादन गुणस्थान को लेकर जीव नरक में नहीं जाता है और वैक्रियिक मिश्रकाययोग में सासादन गुणस्थान उत्पन्न नहीं होता है; इसलिए वहाँ नरकगति सम्बन्धी जातियाँ नहीं पाई जाती हैं।
इसी प्रकार कुल भी २६ लाख करोड़ ही जानना चाहिए।
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*शलभ*