22. चौबीस ठाणा– औदारिकमिश्र काययोग
https://youtu.be/COfeOOEy1rc?si=oB11sYtVzl6nkbnE
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*२४ स्थान औदारिक मिश्र काययोग*
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*०१) गति ०२/०४* मनुष्यगति, तिर्यंचगति
*०२) इन्द्रिय ०५/०५* सभी पाचो इन्द्रिय मे
*०३) काय ०६/०६* पाँचो स्थावर व त्रसकाय
*०४) योग स्वकीय/१५* औदारिक मिश्रकाययोग
*०५) वेद ०३/०३* तीनो वेद
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद
*०६) कषाय २५/२५* कषाय १६ नोकषाय ०९
*०७) ज्ञान ०६/०८*
कुमति, कुश्रुत, मति, श्रुत, अवधि, केवलज्ञान
*केवलज्ञान केवली समुद्धात अवस्था मे*
*०८) संयम ०२/०७* दो संयम
असंयम, यथाख्यात संयम समुद्धात अवस्था मे
*०९) दर्शन ०४/०४* चारो दर्शन
चक्षुदर्शन,अचक्षुदर्शन,अवधिदर्शन,केवलदर्शन
*१०) लेश्या ०६/०६* छहो लेश्या
कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पदम और शुक्ल
*११) भव्यक्त्व ०२/०२* भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व ०४/०६* चार सम्यक्त्व
मिथ्यात्व, सासादन, क्षायिक, क्षयोपशमिक (कृतकृत्य वेदक अपेक्षा)
*१३) संज्ञी ०२/०२* सैनी और असैनी
*१४) आहारक ०१/०२* आहारक
*१५) गुणस्थान ०४/१४* ०१, ०२, ०४, १३
*१६) जीवसमास १९/१९* सभी भेदो में
*१७) पर्याप्ति ०२/०६* आहार, शरीर
*१८) प्राण ०७/१०* सात प्राण
इन्द्रिय प्राण ०५, बल ०१, आयु प्राण
*१९) संज्ञा ०४/०४* चारो संज्ञा
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग १०/१२*
कुअवधिज्ञानोपयोग और मनःपर्ययज्ञानो नही होता
*२१) ध्यान १०/१६*
आर्त ०४, रौद्र ०४, धर्म ०२
*२२) आस्रव ४३/५७*
मिथ्यात्व ०५,अविरति १२,कषाय २५, योग स्वकीय
*२३) जाति ७६ लाख/८४ लाख*
नारकी ०४ लाख, देवो ०४ लाख के बिना
*२४) कुल-१४८.५ ला. करोड/१९९.५ ला. करोड*
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*प्रश्न ५६) औदारिकमिश्र काययोग किसे कहते हैं?*
उत्तर : विग्रहगति के बाद और शरीर पर्याप्ति तक के काययोग को मिश्र काययोग कहते है। मिश्र काय योग तीनो शरीर (औदारिक, वैक्रियक, आहारक) मे होता है।
शरीर पर्याप्ति से पूर्व कार्मण शरीर की सहायता से होने वाले "औदारिक काययोग" को "औदारिक मिश्रकाययोग" कहते है। क्योंकि यह योग औदारिक वर्गणाओं और कार्मणवर्गणाओं इन के निमित्त से होता है। अतएव इसको औदारिक मिश्र काययोग कहते हैं। *(गो. जी.२३१)*
औदारिकमिश्र वर्गणाओं के अवलम्बन से जो योग होता है वह औदारिकमिश्र काययोग है *(सर्वा.६१)*
*प्रश्न ५७) यदि कार्मण काययोग की सहायता से मिश्रयोग होता है तो ऋजुगति से जाने वाले के मिश्रयोग कैसे बनेगा?*
उत्तर : मूलाचार, सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रन्थों में सात प्रकार की काय वर्गणाएँ बताई गई हैं। उनमें से जो औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र तथा आहारकमिश्र वर्गणाएँ हैं उनको औदारिक मिश्रादि अवस्थाओं में ग्रहण करने से औदारिक मिश्र आदि योग बन जाते हैं। इसमें कोई बाधा नहीं है ।
*नोट* इसी प्रकार केवली समुद्धात में औदारिक मिश्र काययोग बन जाता है।
*प्रश्न ५८) किन-किन जीवों के औदारिक मिश्र काय योग ही होता है?*
उत्तर :जो जीव ऋजुगति से लब्ध्यपर्यातक मनुष्यों तिर्यंच मे उत्पन्न होते हैं उनके औदारिक मिश्र काय योग ही होता है क्योंकि वे औदारिक काययोग होने के पहले ही मरणको प्राप्त हो जाते हैं तथा ऋजुगति से आने के कारण कार्मण काययोग नहीं है ।
*प्रश्न ५९) क्या कोई ऐसे जीव भी हैं जिनके औदारिक मिश्र काययोग के समान वैकियिक मिश्र काययोग ही हों?*
उत्तर : नहीं है, संसार में ऐसे कोई जीव नहीं हैं जिनके औदारिकमिश्र काययोग के समान वैक्रियिक मिश्र काययोग ही हो, क्योंकि मनुष्य-तिर्यंचो के समान देव-नारकियों में काई भी जीव शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले मरण को प्राप्त नहीं होते हैं। वहा वैक्रियिक मिश्र काययोग वाले जीव नियम से वैक्रियिक काययोगी बनते ही हैं। इसलिए केवल वैक्रियिक मिश्र काययोगी जीव नहीं हो सकते हैं।
*प्रश्न ६०) औदारिकमिश्र काययोग में कम-से- कम कितनी कषायें हो सकती हैं?*
उत्तर : औदारिक मिश्रकाययोग में कम- से- कम उन्नीस (१९) कषायें हो सकती हैं– अप्रत्याख्यानावरण ०४, प्रत्याख्यानावरण ०४, संज्वलन ०४, हास्यादि ०६ नोकषायें तथा पुरुष वेद। ये उन्नीस(१९) कषायें चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव की अपेक्षा कही गई हैं। पुरुषवेद मे पुरुषवेद नोकषायें, स्त्रीवेद मे स्त्रीवेद नोकषायें, नपुंसकवेद मे नपुंसकवेद नोकषायें होती है।
अर्थात् औदारिकमिश्र योग वाले सम्यग्दृष्टि जीवों के अनन्तानुबन्धी चतुष्क, स्त्रीवेद तथा नपुंसक वेद नहीं होते हैं। तेरहवें गुणस्थान में भी औदारिकमिश्र काययोग ही है लेकिन वहाँ कषायें नहीं होती हैं।
*प्रश्न ६१) क्या ऐसे कोई औदारिकमिश्र काययोग वाले जीव हैं जो भव्य ही हों?*
उत्तर : हा है, दूसरे, चौथे और तेरहवे (०२-०४-१३) गुणस्थान वाले औदारिकमिश्र काययोगी जीव भव्य ही होते हैं तथा औदारिक मिश्रकाययोगी सादि मिथ्यादृष्टि जीव भी भव्य ही होते।
*प्रश्न ६२) औदारिक मिश्र काययोग में कौन-कौन से सम्यक्त्व नहीं होते हैं?*
उत्तर : औदारिक मिश्र काययोग में दो सम्यक्त्व नहीं होते हैं- सम्यग्मिथ्यात्व और उपशम सम्यक्त्व
क्योंकि इन दोनों सम्यकों में मरण नहीं होता है। यद्यपि द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में मरण होता है लेकिन वे मरकर मनुष्य-तिर्यंच में उत्पन्न नहीं होते हैं जिससे उनके औदारिक मिश्र काययोग बन जावे।
*प्रश्न ६३) औदारिक मिश्र काययोग में क्षायिक सम्यग्दर्शन किस-किस अपेक्षा पाया जाता है?*
उत्तर : औदारिक मिश्रकाययोग में क्षायिक सम्यग्दर्शन की अपेक्षाएँ-
*०१)* बद्धायुष्क मनुष्य जब क्षायिक सम्यग्द्रष्टी अथवा कृतकृत्य वेदक बनकर भोगभूमि में जाता है तब उसके औदारिक मिश्र काययोग होता है।
अर्थात जिसने मिथ्यात्व अवस्था में मनुष्यायु या तिर्यंचायु का बंध कर लिया है वह बाद मे क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त करे तो वह भोगभूमि मे ही जाएगा तथा वहा पर क्षायिक सम्यग्दर्शन ही रहेगा
*०२)* क्षायिक सम्यग्दृष्टि देव-नारकी मरकर जब मनुष्य बनते हैं तब उनके औदारिक मिश्र काययोग होता है।
*०३)* तेरहवें गुणस्थान की समुद्धात अवस्था में जब औदारिक मिश्रकाययोग होता है तब भी क्षायिक सम्यक्त्व होता है।
*प्रश्न ६४) औदारिक मिश्र काययोगी सम्यग्दृष्टि के छहों लेश्याएँ कैसे सम्भव हैं?*
उत्तर : छठी पृथ्वी से निकलकर जो अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य पर्याय में आते हैं उनके अपर्याप्तक अवस्था में वेदक सम्यक के साथ कृष्ण लेश्या पाई जाती है। *(धवला ०२/७५२)*
पहली से छठी पृथ्वी तक के असंयत सम्यग्दृष्टि नारकी जीव अपने-अपने योग्य कृष्ण, नील, कापोत लेश्या के साथ मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
उसी प्रकार असंयत सम्यग्दृष्टि देव भी अपने-अपने योग्य पीत, पदम और शुक्ल लेश्याओं के साथ मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्यों के अपर्याप्त काल में अर्थात्-औदारिक मिश्रकाययोग में छहों लेश्याएँ बन जाती हैं ।
*प्रश्न ६५) औदारिक मिश्र काययोग में कम-से-कम आस्रव के कितने प्रत्यय हैं?*
उत्तर : औदारिक मिश्रकाययोग में कम-से-कम आस्रव का एक प्रत्यय होता है।
तेरहवें गुणस्थान में समुद्धात की अपेक्षा औदारिक मिश्र काययोग सम्बन्धी आस्रव का प्रत्यय पाया जाता है ।
*प्रश्न ६६) औदारिक मिश्र काययोग में कौन- कौन सी जातियों नहीं होती हैं?*
उत्तर : औदारिक मिश्रकाययोग में आठ (०८) लाख जातियाँ नहीं होती हैं– चार (०४) लाख देवों की, चार (०४) लाख नारकियों की ।
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*
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