21. चौबीस ठाणा–औदारिक काययोग*
https://youtu.be/UiRLE4NeqUM?si=uoDsg8_5jWrZ1OjR
*२४ स्थान औदारिक काययोग*
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*०१) गति ०२/०४* मनुष्यगति, तिर्यंचगति
*०२) इन्द्रिय ०५/०५* सभी पाचो इन्द्रिय मे
*०३) काय ०६/०६* पाँचो स्थावर व त्रसकाय
*०४) योग स्वकीय/१५* औदारिक काययोग
*०५) वेद ०३/०३* तीनो वेद
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद
*०६) कषाय २५/२५* कषाय १६ नोकषाय ०९
*०७) ज्ञान ०८/०८* आठो ज्ञान
*०८) संयम ०७/०७* सातो संयम
सा.छे.परिहार.सूक्ष्म.यथा.संयमा.असंमय
*०९) दर्शन ०४/०४* चारो दर्शन
चक्षुदर्शन,अचक्षुदर्शन,अवधिदर्शन,केवलदर्शन
*१०) लेश्या ०६/०६* छहो लेश्या
कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पदम और शुक्ल
*११) भव्यक्त्व ०२/०२* भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व ०६/०६* छहो (मिथ्यात्त्व, सासादन,मिश्र,औपशमिक,क्षायिक,क्षयोपशमिक)
*१३) संज्ञी ०२/०२* सैनी और असैनी
*१४) आहारक ०१/०२* आहारक
*१५) गुणस्थान १३/१४* ०१–१३ तक
अयोगकेवली गुणस्थान मे नही होता
*१६) जीवसमास १९/१९* सभी भेदो में
*१७) पर्याप्ति ०६/०६* छहो
आहार,शरीर,इन्द्रिय,श्वासोच्छवा,भाषा,मनःपर्याप्ति
*१८) प्राण १०/१०* दसो प्राण
*१९) संज्ञा ०४/०४* चारो संज्ञा
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग १२/१२* सभी उपयोग में
*२१) ध्यान १५/१६*
व्युपरतक्रियानिवृति के बिना
*२२) आस्रव ४३/५७*
मिथ्यात्व ०५,अविरति १२,कषाय २५, योग स्वकीय
*२३) जाति ७६ लाख/८४ लाख*
नारकी ०४ लाख, देवो ०४ लाख के बिना
*२४) कुल-१४८.५ लाख करोड/१९९.५ लाख करोड*
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*प्रश्न ४८) औदारिक काययोग किसे कहते हैं?*
उत्तर : औदारिक शरीर के लिए आत्म प्रदशों की जो कर्म-नोकर्म को आकर्षण करने की शक्ति है उसे ही औदारिक काययोग कहते हैं। ऐसी अवस्था में औदारिक वर्गणा के स्कन्धों का औदारिक काय रूप परिणमन में कारण जो आत्मप्रदेशों का परिस्पन्द है वह औदारिक काययोग है। *(गो. जी. २३०)*
उदार या स्थूल में जो उत्पन्न हो उसे औदारिक जानना चाहिए। उदार में होने वाला जो काययोग है वह औदारिककाययोग है। *(पंच संग्रह प्राकृत)*
औदारिक शरीर द्वारा उत्पन्न हुई शक्ति से जीव के प्रदेशों में परिस्पन्द का कारणभूत जो प्रयत्न होता है औदारिककाययोग कहते है। *(धवला ०१/२९१)*
*प्रश्न ४९) औदारिक काययोग किस-किस के होता है?*
उत्तर : औदारिक काययोग
*०१)* पृथ्वी, जल, अग्नि, वायुकायिक के बादर, सूक्ष्म सभी जीवो के औदारिक काययोग होता है।
*०२)* वनस्पति मे–वृक्ष, लता, गुल्म, आम्र, जामफल, लौकी, परवल आदि सब्जियो के भी औदारिक काययोग होता है।
*०३)* गाँय, भैस, हाथी, घोडा, कबुतर, चिडिया, मयूर आदि भी औदारिक काययोग होता है।
*०४)* चीटी, कीडे, भ्रमर, लट, केंचुआ आदि के,
*०५)* भोगभूमिया, कर्मभूमिया, कुभोगभूमिया मनुष्य-तिर्यंचों के.
*०६)* तीर्थंकर भगवान, अरिहंत केवली, ऋद्धि धारक मुनिराज आदि के भी
*०७)* ८५० म्लेच्छ खण्डों में, आर्यखण्डों में तथा समस्त पर्याप्त तिर्यंच-मनुष्यों के औदारिक काययोग होता है ।
*प्रश्न ५०) क्या ऐसे कोई औदारिक काययोगी हैं जिनके कषायें नहीं होती हैं?*
उत्तर : हाँ है, ग्यारहवें, बारहवें तथा तेरहवें गुणस्थान वाले औदारिक काययोगी के कषायें नहीं होती हैं। यद्यपि चौदहवें गुणस्थान में भी कषायें नहीं होती हैं लेकिन वहाँ औदारिक काययोग नहीं होता है।
*प्रश्न ५१) क्या ऐसा कोई औदारिक काययोगी है जिसके मतिज्ञान नहीं होता?*
उत्तर : हाँ है, प्रथम, द्वितीय, तृतीय गुणस्थान में तथा तेरहवें गुणस्थान वाले जीवों के मतिज्ञान नहीं होता है। यद्यपि चौदहवें गुणस्थान में भी मतिज्ञान नहीं है लेकिन वहाँ योग का भी अभाव है।
*◆विशेष* यहा ०१, ०२, ०३ गुणस्थान वाले के मिथ्याज्ञान है कुज्ञान आदि, सुज्ञान नही है यानि मति आदि ज्ञान नही है।
*प्रश्न ५२) औदारिक काययोग में केवलदर्शन किस अपेक्षा से पाया जाता है?*
उत्तर : औदारिक काययोग में केवलदर्शन सयोग केवली भगवान की अपेक्षा होता है। यद्यपि केवलदर्शन अयोगी केवली और सिद्ध भगवान के भी होता है लेकिन उनके कोई योग नहीं होता है इसलिए औदारिक काययोग में केवल तेरहवें गुणस्थान में ही केवलदर्शन कहा है।
*प्रश्न ५३) औदारिक काययोग में कम-से- कम कितनी पर्याप्तियों होती हैं?*
उत्तर : औदारिक काययोग में कम-से-कम चार पर्यातियाँ होती हैं- आहार पर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति तथा श्वासोच्चवास पर्याप्ति । ये चार पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय की अपेक्षा जाननी चाहिए ।
*◆ विशेष* दो पर्याप्तियाँ भी कह सकते है जब आहारक तथा शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद से औदारिक काययोग प्रारम्भ हो जाता है।
*प्रश्न ५४) औदारिक काययोगी के कितने प्राण होते हैं?*
उत्तर : कम से कम चार प्राण और अधिक से अधिक दस प्राण तथा अपर्याप्तक अवस्था मे कम से कम तीन प्राण और सयोग केवली भगवान के दो प्राण होते है।
औदारिक काययोग में कम-से-कम दों प्राण होते हैं यह तेरहवें गुणस्थान में श्वासोच्चवास तथा वचनयोग का निरोध होने पर उनके (काय बल (औदारिक काययोग) एव आयु प्राण रहते है।
औदारिक काययोग में अधिक-से-अधिक दस प्राण होते हैं-इन्द्रिय प्राण ०५, बलप्राण ०३, श्वासोच्चवास तथा आयु प्राण। ये दस प्राण संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यातक जीवों के होते हैं।
*प्रश्न ५५) क्या औदारिक काययोगी के आठों ज्ञानोपयोग एक साथ हो सकते हैं?*
उत्तर : यद्यपि नाना जीवों की अपेक्षा औदारिक काययोगी के आठों ज्ञानोपयोग एक साथ हो जाते हैं "लेकिन एक जीव की अपेक्षा" आठों ज्ञानोपयोग एक साथ नहीं हो सकते हैं।
क्योंकि अभिव्यक्ति की अपेक्षा एक जीव के एक समय में एक ही ज्ञानोपयोग हो सकता है। फिर भी एक जीव के नाना समयों की अपेक्षा आठों ज्ञानोपयोग एक जीवन में हो सकते हैं।
औदारिक काययोगी मिथ्यादृष्टि एवं सासादन सम्यग्दृष्टि के तीन कुज्ञान (कुमति, कुश्रुत, कुअवधि)
चौथे, पाँचवें गुणस्थान में तीन ज्ञानो (मति, श्रुत, अवधि),
छठे से बारहवे गुणस्थान तक चार ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि, और मनःपर्यय ज्ञान),
तेरहवे गुणस्थान मे औदारिक काययोगी के एक केवलज्ञान हो सकता है।
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*
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