गुरुवार, 29 मई 2025

13. चौबीस ठाणा-पंचेन्द्रिय मार्गण*

13. चौबीस ठाणा-पंचेन्द्रिय मार्गण*
https://youtu.be/-ja9eR2PbG4?si=OvjJghRb-AGoKunj
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*✍️ पंचेन्द्रिय मे २४ स्थान*
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*०१) गति       ०४/०४*   नरक,तिर्यंच, मनुष्य,देव
*०२) इन्द्रिय    ०१/०५*   पंचेन्द्रिय
*०३) काय       ०१/०६*  त्रसकाय
*०४) योग        १५/१५*  
किसी जीव के एक साथ अधिकत्तम १३ योग हो सकते है।
*०५) वेद         ०३/०३*   तीनों वेद
*०६) कषाय     २५/२५*  सभी कषाय
*०७) ज्ञान        ०८/०८*  आठो ज्ञान
*०८) संयम       ०७/०७*  सातो संयम
*०९) दर्शन       ०४/०४*  चारो दर्शन
*१०) लेश्या      ०६/०६*  छहो लेश्या
*११) भव्यक्त्व  ०२/०२*  भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व   ०६/०६* छहो भेद
*१३) संज्ञी        ०२/०२*  संज्ञी, असंज्ञी दोनो
*१४) आहारक  ०२/०२*  आहारक, अनाहारक
*१५) गुणस्थान  १४/१४*  सभी चौदह गुणस्थान
*१६) जीवसमास ०२/१९* 
संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय
*१७) पर्याप्ति       ०६/०६*  छहो पर्याप्तियाँ
*१८) प्राण           १०/१०*  दसो प्राण
*१९) संज्ञा          ०४/०४*  चारो संज्ञा
आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा।
*२०) उपयोग      १२/१२*  
ज्ञानोपयोग ०८, दर्शनापयोग ०४
*२१) ध्यान         १६/१६*  
*आर्तध्यान ०४* इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, वेदना और निदान।
*रौद्रध्यान ०४* हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी
*धर्मध्यान ०४* आज्ञाविचय,अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय।
*शुक्ल ०४* पृथक्त्ववितर्क वीचार, एकत्ववितर्क अवीचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति, व्युपरतक्रियानिवृति।
*२२) आस्रव       ५७/५७*   
मिथ्यात्व ०५, अविरति १२, कषाय २५, योग १५
*२३) जाति       /८४ लाख*  २६ लाख
मनुष्य १४ लाख, देव ०४ लाख, नरक ०४ लाख, पंचेन्द्रिय तिर्यंच ०४ लाख
*२४) कुल*                  १०८.५ लाख करोड
मनुष्यों के –  १५  लाख करोड़,
देवों के –       २६ लाख करोड
नारकियों के –२५ लाख करोड़
*पंचेन्द्रिय तिर्यंचो मे*
                   जलचरों के –१२.५ लाख करोड़
                   नभचरों के – १२    लाख करोड़
                   थलचरों के – १९    लाख करोड़
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✍️ पंचेन्द्रिय जीव :-
जिनका चिह्न स्पर्श, रस, गंध, वर्ण तथा शब्द विषयक ज्ञान है, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं।
जिनके पाँच इन्द्रियाँ होती हैं, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं। *जैसे* देव, नारकी, मनुष्य, हाथी, घोड़ा, बैल आदि 
*(गोम्मटसार जीवकाण्ड १६६)*
मनुष्य, देव, नारकी, तिर्यंच संज्ञी, असंज्ञी तिर्यंच, साँप, फन वाले साँप (नाग), सरकने वाले अजगर आदि चौपाये आदि पाँच इन्द्रिय जीव कहलाते हैं।

✍️ पंचेन्द्रिय तिर्यंच के प्रकार :-
पंचेन्द्रिय तिर्यब्ज तीन प्रकार के होते हैं –जलचर, थलचर, नभचर।
*जलचर* जो पानी में रहते हैं, जल ही जिनका जीवन है वे जलचर जीव हैं।
*जैसे* मछली, महामत्स्य, तंदुलमत्स्य आदि।
*थलचर* जो धरती पर निवास करते हैं, वे थलचर है। *जैसे* हाथी, घोड़ा, बैल, गाय, चीता,भैंस आदि 
*नभचर* जो आकाश में उड़ते हैं, वृक्षों पर रहते हैं, वे नभचर हैं। 
*जैसे* कबूतर, चिड़िया, तोता, मैना, कोयल आदि
*मोर भी नभचर हैं थलचर नही*

*प्रश्न ०३) कौन सी इन्द्रि वालो के एक काययोग और एक वचनयोग होता है?*
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवो की पर्याप्तक अवस्था मे अनुभय वचनयोग तथा औदारिक काययोग ही होता है। यह पर्याप्तक अवस्था मे होता है।

*प्रश्न ०४) क्या कोई ऐसा पंचेन्द्रिय जीव सम्यक मार्गणा के सभी भेदों को प्राप्त कर सकता है?*         *(किसी भी एक जीव की अपेक्षा)*
हाँ हो सकता हैं, मनुष्यगति मे हो सकता है। एक निकट भव्य पंचेन्द्रिय जीव के सम्यक्त्व मार्गणा के सभी भेदों को प्राप्त कर सकता है। 
*जैसे* किसी ने मनुष्यो मे *मिथ्यात्व सहित* जन्म लिया तथा आठ वर्ष का होना पर औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करा तो *औपशमिक* भी हो गया। इसका काल अंतर्मुहूत है।
औपशमिक का काल पूरा होने से पहलेअनंतानुबंधी चतुष्क से किसी एक का उदय आ जावे तो वह *सासादन सम्यग्दृष्टि* बन जाता है।
यदि औपशमिक सम्यक्त्व पूरा होने पर सम्यक्त्व मिथ्यात्व का उदय आये तो तीसरा *सम्यग्मिथ्यात्व* भी होता है। 
औपशमिक सम्यक्त्व का काल पूरा हो तथा सम्यक प्रकृति का उदय आ जाए तो *क्षायोपशमिक सम्यक्त्व* होता है। 
वही क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि यदि सात प्रकृति का (अनन्तानुबन्धी चतुष्क तथा मिथ्यात्व, सम्यक मिथ्यात्व तथा सम्यक् प्रकृति) क्षय कर देता है वह *क्षायिक सम्यग्दृष्टि* होता है।
*इस प्रकार एक जीव के सम्यक्त्व मार्गणा के सभी भेद एक भव मनुष्यगति वाले के ही हो सकते हैं*
*नोट* सम्यक मिथ्यात्व तथा सम्यक् प्रकृति का उदय मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनों के आ सकता है।

*प्रश्न ०५) क्या सभी पंचेन्द्रिय जीवों के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं?*
नहीं होती, मात्र सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवों के ही छहों पर्याप्तियाँ होती है। सैनी लब्ध्यपर्यातक जीवों के एक भी पर्यातियाँ पूर्ण नहीं होती हैं,क्योंकि शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले ही उसका मरण हो जाता है इसलिए उनको लब्ध्यपर्यातक/अपर्याप्तक कहा जाता है। उसके छह अपर्याप्तियाँ होती है।
निर्वत्यापर्याप्तक जीव के भी उस समय उस समय छह पर्याप्तियाँ नही होती, शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने पर भी दो पर्याप्ति होती है। जीव के जब छहो पर्याप्तियाँ पूर्ण होती है तभी उसे पर्याप्तक जीव कहते है।

*प्रश्न ०६) पंचेन्द्रिय जीवों के पन्द्रह योग किस अपेक्षा होते हैं?*
पंचेन्द्रिय जीवों के पन्द्रह योग–
*मन ०४*   सत्य,असत्य, उभय, अनुभय मनोयोग
*वचन ०३* सत्य, असत्य, उभय वचनयोग
(संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा तीनो गति के जीवो की अपेक्षा से)
*अनुभय वचनयोग* संज्ञी असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपेक्षा
*औदारिकद्बिक*     मनुष्य–तिर्यंच की अपेक्षा *वैक्रियिकद्विक*      देव– नारकी की अपेक्षा *आहारकद्विक*     छठे गुणस्थान मुनि की अपेक्षा *कार्मणकाययोग* विग्रह गति तथा केवली समद्धात की अपेक्षा

*प्रश्न ०७) पंचेन्द्रिय जीवों की २६ लाख जातियों कौन-कौनसी हैं?*
पंचेन्द्रिय जीवों की २६ लाख जातियाँ– 
*नारकियों* की चार (०४) लाख जातियाँ
*देवों की*         चार (०४) लाख जातियाँ
*मनुष्यों* की     चौदह (१४) लाख जातियाँ
*तिर्यंच पंचेन्द्रियों* की चार (०४) लाख जातियाँ है।

*प्रश्न ०८) पंचेन्द्रिय जीवों के १०८.५ लाख करोड़ कुल कौन- कौन से हैं?*
उत्तर:-पंचेन्द्रिय के १०८.५ लाख करोड़ कुल–
*मनुष्यों के*      १४ लाख करोड़,
*देवों के*          २६ लाख करोड
*नारकियों के*   २५ लाख करोड़
*पंचेन्द्रिय तिर्यंचो मे*
*जलचरों के* १२.५ लाख करोड़
*नभचरों के*     १२ लाख करोड़
*थलचरों के*     १९ लाख करोड़

*प्रश्न ०८) किन जीवों के इन्द्रियाँ नहीं होती हैं?* तेरहवें-चौदहवें गुणस्थान में इन्द्रिया (भावेन्द्रिय) नहीं होता हैं, क्योंकि वहाँ इन्द्रियावरण कर्म का क्षयोपशम नहीं होता है।
विग्रहगति में तथा जब तक इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती तब तक द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती हैं क्योंकि वहाँ इन्द्रिय के योग्य नामकर्म का उदय नहीं होता है।
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*✍️समुच्चय प्रश्नोत्तर*
*प्रश्न ०९) किस इन्द्रिय वाले जीव किस गति में होते हैं?*
*तिर्यंचगति* में एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीव होते हैं।
*नरक, मनुष्य तथा देवगति*  में संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव ही होते हैं।
*मनुष्यगति में अनिन्द्रिय जीव भी होते हैं।*
अनिन्द्रिय के दो अर्थ है–एक मन दूसरा अतिन्द्रिय
*पंचमगति (सिद्ध गति)* अनिन्द्रिय जीव ही होते हैं 

*प्रश्न १०) कौन- कौन से प्राण इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं?*
चार प्राण इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छवास और आयु प्राण।
रसना इन्द्रिय आदि प्राण भी द्वीन्द्रिय जीवों से शुरु होते है।
वचनबल प्राण भी– द्वीन्द्रिय जीवों से शुरु होते है।
मनोबल प्राण भी–  पंचेन्द्रिय जीवो के होते है।

*प्रश्न ११) ऐसे कौन-कौन से उपयोग हैं जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में नहीं पाये जाते हैं*
नौ उपयोग इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में नहीं पाये जाते हैं- ज्ञानोपयोग ०६, दर्शनापयोग ०३
*मतिज्ञान,श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्ययज्ञान, केवलज्ञानोपयोग तथा कुअवधिज्ञानोपयोग. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन*
चक्षुदर्शनोपयोग. एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीवों के नहीं होता है। मात्र तीन उपयोग (कुमतिज्ञानो, कुश्रुतज्ञानो तथा अचक्षुदर्शनोपयोग) होते है।
इनमें से चक्षुदर्शन को छोड्कर शेष आठ उपयोग संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के ही होते हैं। 
*कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान और अचक्षुदर्शन सभी इन्द्रियो मे पाए जाते है।*

*प्रश्न १२) आस्रव के ऐसे कौन- कौनसे कारण हैं जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं?*
आस्रव के ३८ प्रत्यय ऐसे हैं, जो इन्द्रिय मार्गणा के सभी भेदों में पाये जाते हैं।
*मिथ्यात्व ०५, कषाय २३, अविरति ०७, योग ०३* स्त्रीवेद, पुरुषवेद – एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक नहीं होते हैं । 
रसनादिक चार इन्द्रिय तथा मन संबधी अविरति–
एकेन्द्रिय जीवों के नहीं होती हैं 
मन ०४, वचन ०३ योग भी एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक नहीं हैं। 
आहारकद्विक काययोग मुनिराजो के होता है
वैक्रियिकद्विक काययोग देव नारकियो के होता है
अनुभयवचनयोग भी एकेन्द्रिय जीवों के नहीं है ।
इस तरह संज्ञी पंचेन्द्रिय के १२ अविरति
असंज्ञी पंचेन्द्रिय के ११ अविरति
चतुरिन्द्रिय के १० अविरति
त्रीन्द्रिय के ०९ अविरति
द्वीन्द्रिय के ०८ अविरति
एकेन्द्रिय के ०७ अविरति होती है

*प्रश्न १३) आस्रव के ऐसे कौन-कौन से प्रत्यय हैं जो एकेन्द्रिय में नहीं होते हैं लेकिन पंचेन्द्रिय के होते हैं*
आसव के १९ प्रत्यय ऐसे हैं जो एकेन्द्रिय के नहीं होते हैं लेकिन पंचेन्द्रिय के होते हैं।
अविरतियाँ ०५– रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण तथा मन सम्बन्धी
कषाय ०२)–  स्त्रीवेद तथा पुरुषवेद
योग १२)–     मनोयोग ०४, वचनयोग ०४, आहारकद्विक तथा वैक्रियिकद्रिक काययोग

*प्रश्न १४) पंचेन्द्रिय जीवों के जाति तथा कुल अधिक हैं या एकेन्द्रिय जीवों के?*
पंचेन्द्रियों में कुल अधिक हैं, लेकिन एकेन्द्रियों में जातियाँ अधिक हैं।
पंचेन्द्रियों में १०८.५ लाख करोड़ कुल हैं, एकेन्द्रिय में मात्र ६७ लाख करोड़ कुल ही हैं।
पंचेन्द्रियों के मात्र २६ लाख जातियों हैं तो एकेन्द्रिय जीवों की ५२ लाख जातियाँ हैं।

*प्रश्न १५) इन्द्रिय मार्गणा के कौन भेद में सबसे ज्यादा जीवसमास हैं?*
एकेन्द्रिय जीवों के १४ जीवसमास हैं जो सबसे ज्यादा है।
पृथ्वीकायिक दो, जलकायिक दो, अग्निकायिक के दो, वायुकायिक के दो तथा वनस्पतिकायिक के छह इस प्रकार चौदह (१४) जीवसमास हैं ।

*प्रश्न १६) कौन सी इन्द्रिय वालों के एक काययोग एवं एक ही वचनयोग होता है?*
उत्तर:-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों की पर्याप्त-अवस्था में एक औदारिक काययोग और एक अनुभयवचनयोग होता है।
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*

गुरुवार, 15 मई 2025

12. चौबीस ठाणा-विकलेन्द्रिय मार्गण*

12. चौबीस ठाणा-विकलेन्द्रिय मार्गण*
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*✍️ विकलेन्द्रिय मे २४ स्थान*
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*०१) गति       ०१/०४*   तिर्यंचगति
*०२) इन्द्रिय    ०१/०५*   स्वकीय
द्वीन्द्रिय मे ०२, त्रीन्द्रिय मे ०३, चतुरिन्द्रिय ०४
*०३) काय       ०१/०६*  त्रसकाय
*०४) योग        ०४/१५*  
अनुभय वचनयोग, कार्मणकाययोग,औदारिकद्विक 
*०५) वेद         ०१/०३*   नपुंसकवेद
*०६) कषाय     २३/२५*  
स्त्रीवेद, पुरुषवेद नोकषाय नही होती है।
*०७) ज्ञान        ०२/०८*  कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान
*०८) संयम       ०१/०७*  असंयम
*०९) दर्शन       ०२/०४*  चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन
दो और तीन इन्द्रिय जीवो मे अचक्षुदर्शन, चार इन्द्रिय के चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन है।
*१०) लेश्या      ०३/०६*  कृष्ण, नील, कापोत
*११) भव्यक्त्व  ०२/०२*  भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व   ०२/०६* मिथ्याद्रष्टि, सासादन
*सासादन सम्यक्त्व निर्वत्यपर्याप्तक अवस्था मे है*
*१३) संज्ञी        ०१/०२*  असंज्ञी 
*१४) आहारक   ०२/०२*  आहारक, अनाहारक
*१५) गुणस्थान   ०२/१४*  मिथ्यात्व, सासादन
*१६) जीवसमास ०३/१९*  स्वकीय
द्वीन्द्रिय मे ०१, त्रीन्द्रिय मे ०१, चतुरिन्द्रिय ०१
*१७) पर्याप्ति       ०५/०६*  मनः पर्याप्ति नही है
*१८) प्राण           ०८/१०*  
द्वीन्द्रिय के ०६, त्रीन्द्रिय के ०७, चतुरिन्द्रिय के ०८
*१९) संज्ञा         ०४/०४*  
आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा।
*२०) उपयोग      ०४/१२*  
कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान, अचक्षुदर्शन, चक्षुदर्शन
द्वीन्द्रिय के ०३, त्रीन्द्रिय के ०३, चतुरिन्द्रिय के ०४
*२१) ध्यान         ०८/१६*  
*आर्तध्यान ०४* इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, वेदना और निदान।
*रौद्रध्यान ०४* हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी।  
*२२) आस्रव   ४०, ४१, ४२/५७*  स्वकीय
*द्वीन्द्रिय ४०* 
मिथ्यात्व ०५, अविरति ०८, कषाय २३, योग ०४
*त्रीन्द्रिय ४१*
मिथ्यात्व ०५, अविरति ०९, कषाय २३, योग ०४
*चतुरिन्द्रिय ४२*
मिथ्यात्व ०५, अविरति १०, कषाय २३, योग ०४
*२३) जाति   स्वकीय/८४ लाख*    
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय प्रत्येक ०२-०२ लाख
*२४) कुल–१९९.५ लाख करोड*  स्वकीय
द्वीन्द्रिय के ०७ लाख करोड, त्रीन्द्रिय के ०८ लाख करोड, चतुरिन्द्रिय के ०९ लाख करोड कुल
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जिनके पाँचो इन्द्रिय ना हो वह विकलेन्द्रि कहलाते है तथा यहा एकेन्द्रिय का ग्रहण नही होता हैं उन्हे अलग से स्थावर कह देते है। झसलिए इनके लिए नया शब्द दे दिया विकलत्रय
*विकलत्रय* यानि विकल= कम इन्द्रि, त्रय=तीन
द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय ओर चतुरिन्द्रिय जीव विकलत्रय हैं।

*प्रश्न ०१) द्वीन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?*
जिनका चिह्न स्पर्श और रस विषयक ज्ञान है वे द्वीन्द्रिय जीव हैं।
जिन जीवों के दो इन्द्रियाँ पाई जाती हैं वे द्वीन्द्रिय जीव हैं। *जैसे* शंख, कृमि, लट (कँचुआ), सीप, गिजाई, जौंक, कौड़ी आदि   *(गो. जी.१६६)*

*प्रश्न ०२) त्रीन्द्रिय जीव किसे कहते हैं ?*
जिनका चिह्न स्पर्श, रस तथा गन्ध विषयक ज्ञान है वे जीव त्रीन्द्रिय हैं। 
जिन जीवों के तीन इन्द्रियाँ होती हैं त्रीन्द्रिय जीव हैं।
*जैसे* कुन्धु, पिपीलिका, चींटा, जूँ,  बिच्छू, लीखें, कनखजूरा, खटमल आदि।    *(गो. जी.१६६)*

*प्रश्न ०३) चतुरिन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?
जिनका चिह्न स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण विषयक ज्ञान है वे चतुरिन्द्रिय जीव हैं, जिनके चार इन्द्रियाँ हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव हैं। *जैस* झिंगुर, डाँस, मच्छर, पतंगा, भ्रमर आदि।     *(गो. जी. १६६)८

*प्रश्न ०४) विकलत्रयों में चींटा-चींटी, भ्रमर-भ्रमरी आदि स्त्री-पुरुष देखे जाते हैं, अत: उनके भी स्त्री- पुरुष वेद मानने में क्या बाधा है?*
विकलत्रयों में भी स्त्री-पुरुष लिंग वाले नाम देखे जाते है। लोक में नपुसक लिंग वाले शब्दों का उच्चारण भी स्त्री या पुरुषवेद के रूप में ही होता है। *जैसे* पुस्तक शब्द नपुसक लिङ्ग का है फिर भी, पुस्तक रखी है, ऐसा ही बोला जाता है यानि स्त्रिलिंग की भाषा मे बोलते है।
दूध शब्द नपुंसक लिङ्ग का है फिर भी पुल्लिंग में बोला जाता है, दुध चुल्ले पर रखा है यह बोला जाता है, यानि पुल्लिंग में बोला जाता है।इसी प्रकार से विकलत्रय, एकेन्द्रिय आदि में भी बोला जाता है। एकेन्द्रियों में भी कमल-कमलिनी आदि। 
इसका अर्थ उनके स्त्री-पुरुष वेद हो गया, ऐसा नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो अजीवों में भी चमचा- चमची, भगोना-भगोनी, कटोरा-कटोरी आदि सभी मे कोई भी लिंग नही है, लेकिन लिंग के अनुसार बोलते है। अजीवों के तो वेद ही नहीं हो सकता है।
अत: आगम में एकेन्द्रिय तथा विकलत्रयों के नपुसक वेद ही कहा गया है, सो सत्य है ।

*प्रश्न ०५) क्या ढाई द्वीप के बाहर के विकलत्रय जीवों में भी नपुंसक वेद ही होता है?*
नहीं, ढाई द्वीप के बाहर विकलत्रय जीव नहीं होते हैं। विकलत्रय जीव तो मात्र कर्मभूमिया तिर्यंचों में ही होते हैं ।

*प्रश्न ०६) क्या ढाई द्वीप के बाहर कहीं पर भी विकलत्रय जीव नहीं होते हैं?*
नहीं, ढाई द्वीप के बाहर असख्यात द्वीप समुद्रो में मात्र पंचेन्द्रिय तिर्यंच होते हैं लेकिन अन्त के स्वयम्भूरमण द्वीप तथा स्वयम्भूरमण समुद्र में विकलत्रय जीव भी पाये जाते हैं। उनके भी नपुंसक वेद ही पाया जाता है।       *(धवला ०४/२४३)*

*प्रश्न ०७) क्या कर्मभूमिया मनुष्य-तिर्यंचों के समान विकलत्रय जीवों के भी वेद की विषमता हो सकती है?*
नहीं,कर्मभूमियाँ मनुष्य-तिर्यंचोंके समान विकलत्रय जीवों के वेद की विषमता नहीं हो सकती है, कहा है –  *नारकसम्हर्च्छिनो नपुंसकानित।।  सु.०२/५०*
विकलत्रय जीव भी सम्मूर्च्छन जन्म वाले होते हैं इसलिए उनके वेद की विषमता नहीं हो सकती है।

*प्रश्न ०८) चींटी आदि के अण्डे देखे जाते हैं, अत: उनके नपुंसक वेद ही कैसे हो सकता है?*
चींटी आदि जीवों के अण्डों की उत्पत्ति गर्भ से नहीं होती है। चींटियाँ आदि केवल यहाँ- वहाँ के मल-मूत्र आदि गन्दे स्थानों से सड़े-गले पुद्‌गलों को लेकर विशेष स्थानों में रख लेती है। कालान्तर में वे ही पुद्‌गल पिण्ड चींटी आदि के शरीर बन जाते हैं।  
 *(श्लो.०५/२५२)* 
◆इसी प्रकार सिर की जुएँ भी जो लीख के रूप में अण्डों जैसी दिखाई देती हैँ, उनकी उत्पात्ती भी ऐसे ही जानना चाहिए। इसलिए अण्डाकार दिखाई देने पर भी ये सब नपुंसक वेद वाले ही होते है।

*प्रश्न ०९)विकलत्रय जीवों के कितने प्राण होते हैं?*
विकलत्रय जीवों के प्राण- 
*दो इन्द्रिय पर्याप्तावस्था में ०६ प्राण*
०२ इन्द्रियाँ (स्पर्शन, रसना) ०२ बल (वचन, काय) आयु और श्वासोच्चवास 
*तीन इन्द्रिय पर्याप्तावस्था में ०७ प्राण*
०३ इन्द्रियाँ (स्पर्शन, रसना, घ्राण), ०२ बल (वचन, काय), आयु और श्वासोच्चवास 
*चतुरिन्द्रिय पर्याप्तावस्था में ०८ प्राण*
०४ इन्द्रियाँ (स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु), ०२ बल (वचन, काय), आयु और श्वासोच्चवास 
◆इन सबके निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था में श्वासोच्छवास तथा वचन बल नहीं होता है अत: इनके क्रमश: ०४, ०५, ०६  होते हैं।         *(गो. जी. १३३)*

*प्रश्न १०) विकलत्रयो के कितने उपयोग होते हैं?* ◆द्वीन्द्रिय तथा त्रीन्द्रिय जीवों के ०३ उपयोग होते हैं- कुमतिज्ञानो, कुश्रुतज्ञानो,  अचक्षुदर्शनोपयोग
◆चतुरिन्द्रिय जीवों के ०४ उपयोग होते हैं- कुमति ज्ञानो, कुश्रुतज्ञानो, चक्षुदर्शनो, अचक्षुदर्शनो
*नोट* द्वीन्द्रिय ओर त्रीन्द्रिय जीवों के चक्षुइन्द्रिय के अभाव में चक्षुदर्शन नहीं होता हैं।

*प्रश्न ११) विकलत्रय जीवों के कितने आस्रव के प्रत्यय होते हैं?*
विकलत्रय जीवों के आस्रव के प्रत्यय- 
*द्वीन्द्रिय जीवों के ४० आसव के प्रत्यय*
मिथ्यात्व ०५, अविरति ०८ (षट्‌कायिक जीव एवं दो इन्द्रिय सम्बन्धी), कषाय २३ (स्त्रीवेद,पुरुषवेद नही) योग ०४ (अनुभय वचनयोग, औदारिक काययोग,
औदारिक मिश्न काययोग, कार्मण काय योग)
*त्रीन्द्रिय जीवों के ४१ आस्रव के प्रत्यय*
मिथ्यात्व ०५, अविरति ०९ (षट्‌कायिक जीव एवं तीन इन्द्रिय सम्बन्धी), कषाय २३ (स्त्रीवेद,पुरुषवेद नही) योग ०४ (अनुभय वचनयोग, औदारिक काय योग,औदारिक मिश्न काययोग, कार्मण काययोग)
*चतुरिन्द्रिय जीवों के ४२ आस्रव के प्रत्यय*
मिथ्यात्व ०५, अविरति १० (षट्‌कायिक जीव एवं चार इन्द्रिय सम्बन्धी), कषाय २३ (स्त्रीवेद,पुरुषवेद नही) योग ०४ (अनुभय वचनयोग, औदारिक काय योग,औदारिक मिश्न काययोग, कार्मण काययोग)

*इन्हीं जीवों के निर्वृत्यपर्याप्तक–लब्ध्यपर्याप्तक अवस्था में चार योगो मे से तीन योग (औदारिक काययोग, कार्मण काययोग तथा वचनयोग) कम हो जाते है, तथा औदारिक मिश्र काययोग ही होता है, क्रमश: ३७, ३८, ३९ आस्रव के प्रत्यय हो जाते है।*

*इन्हीं जीवों के विग्रहगति में तीन योग (औदारिक काययोग, औदारिक मिश्न काययोग, वचनयोग) कम करने पर क्रमश: ३७, ३८, ३९ आस्रव के प्रत्यय है। यहा कार्मण काययोग रहता है*

*प्रश्न १२) एकेन्द्रिय तथा विकलत्रय जीवों के षट्‌कायिक जीवों की हिंसा सम्बन्धी आस्रव के प्रत्यय कैसे हो सकते हैं?*
उत्तर:-मकड़ी के समान कुछ विशेष जाति की झाड़ियाँ मनुष्य जैसे बड़े-बड़े जीवों को भी पकड़ती हुई देखी जाती हैं। चींटियाँ लट आदि को पकड़कर ले जाते हुए प्रत्यक्ष देखी जाती हैं, गाय, भैंस, मनुष्य आदि को कीड़े-मकोड़े आदि काटते हुए देखे जा सकते हैं अत: उनके भी षट्‌कायिक जीवों सम्बन्धी आस्रव होता ही है क्योंकि हिंसा का त्याग किये बिना यदि कोई हिंसा नहीं भी करता है या किसी के निमित्त से हिंसा नहीं भी होती है तो भी उसे हिंसा का पाप लगता ही है।अत: एकेन्द्रिय तथा विकलत्रय जीवों के भी षट्‌कायिक जीवों की हिंसा सम्बन्धी आस्रव के प्रत्यय होते ही हैं।
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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*

गुरुवार, 1 मई 2025

11. चौबीस ठाणा-एकेन्द्रिय मार्गणा

 *11. चौबीस ठाणा-एकेन्द्रिय मार्गणा*

https://youtu.be/EA8u9p5bpGM?si=luA9UQCw5d7Ltl08

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*✍️ एकेन्द्रिय मे २४ स्थान*

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*०१) गति       ०१/०४*   तिर्यंचगति

*०२) इन्द्रिय    ०१/०५*   स्पर्शन इन्द्रिय

*०३) काय       ०१/०६*   स्थावर काय

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकायिक

*०४) योग        ०३/१५*  

कार्मणकाययोग, औदारिकद्विक काययोग

*०५) वेद       ०१/०३*   नपुंसकवेद

*०६) कषाय  २३/२५*  

स्त्रीवेद,पुरुषवेद नोकषाय को छोडकर बाकी सभी

*०७) ज्ञान     ०२/०८*  कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान

*०८) संयम       ०१/०७*  असंयम

*०९) दर्शन       ०१/०४*  अचक्षुदर्शन

*१०) लेश्या      ०३/०६*  कृष्ण, नील, कापोत

*११) भव्यक्त्व  ०२/०२*  भव्य और अभव्य

*१२) सम्यक्त्व   ०२/०६* मिथ्याद्रष्टि, सासादन

*सासादन सम्यक्त्व निर्वत्यपर्याप्तक अवस्था मे है*

*१३) संज्ञी        ०१/०२*  असंज्ञी 

*१४) आहारक   ०२/०२*  आहारक, अनाहारक

*१५) गुणस्थान   ०२/१४*  मिथ्यात्व, सासादन

*१६) जीवसमास  १४/१९*   

*१७) पर्याप्ति        ०४/०६* 

भाषा और मनः पर्याप्ति नही होती है

*१८) प्राण           ०४/१०*  

स्पर्शन, कायबल, आयु और श्वासोच्छवास प्राण

*१९) संज्ञा         ०४/०४*  

आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा।

*२०) उपयोग      ०३/१२*  

कुमति, कुश्रुत, अचक्षुदर्शन

*२१) ध्यान         ०८/१६*  

*आर्तध्यान ०४* इष्टवियोगज, अनिष्टसंयोगज, वेदना और निदान।

*रौद्रध्यान ०४* हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी।  

*२२) आस्रव       ३८/५७*  

*मिथ्यात्व०५* विपरीत,एकान्त,विनय,संशय,अज्ञान

*अविरति ०७* स्पर्शन इन्द्रिय और षट्काय के जीवों की रक्षा नहीं करना की अविरति होती है

*कषाय २३* अनन्तानुबन्धीआदि १६ नोकषाय ०७

*योग ०३* औदारिकद्विक काययोग, कार्मण काययोग

*२३) जाति   –८४ लाख*    ५२ लाख जाति

विकलत्रय एवं पंचेन्द्रिय सम्बन्धी जाति नही होते है।

*२४) कुल–१९९.५ लाख करोड* ६७ लाख करोड़

विकलत्रय एवं पंचेन्द्रिय सम्बन्धी कुल नही होते है। 

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✍️ एकेन्द्रिय जीव :-

जिन जीवों का चिह्न स्पर्शन विषयक ज्ञान है, वे जीव एकेन्द्रिय हैं। 

जिन जीवों के एक ही इन्द्रिय होती है, वे एकेन्द्रिय हैं *जैसे* पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, इतर निगोद, नित्यनिगोद आदि   *(गो. जी. १६६)*


*प्रश्न - एकेन्द्रिय जीवों के द्रव्यवेद नहीं पाया जाता है, इसलिए उनके नपुंसकवेद का अस्तित्व कैसे बतलाया है?*

उत्तर-एकेन्द्रियों में द्रव्यवेद मत होओ; क्योंकि उसकी यहाँ प्रधानता नहीं है। अथवा द्रव्यवेद की एकेन्द्रियों में उपलब्धि नहीं होती है, इसलिए उसका अभाव सिद्ध नहीं होता है । किन्तु सम्पूर्ण प्रमेयों को जानने वाले केवलज्ञान से उसकी सिद्धि हो जाती है। किन्तु यह ज्ञान छद्‌मस्थों में नहीं पाया जाता है।

*(धवला ०१/३४६)*

इनके द्रव्यवेद और भाववेद दोनो नपुंसक होता है। भाववेद क्योकी उनके नपुंसकवेद नामकर्म का उदय है तथा द्रव्यवेद भी नपुंसक है वह बाहर से नही दिखता है लेकिन केवलज्ञानी के ज्ञान मे उनके नपुंसक दिखाई देता है।


*प्रश्न - एकेन्द्रिय जीव स्त्रीभाव व पुरुषभाव नहीं समझते, उनके स्त्री-पुरुष विषयक अभिलाषा कैसे बन सकती है?*

उत्तर-नहीं; क्योंकि जो पुरुष स्त्रीवेद से सर्वथा अनजान है और भृगृह के भीतर वृद्धि को प्राप्त हुआ है, ऐसे पुरुष के भी वासना देखी जाती है। इसलिए एकेन्द्रिय जीवों के स्त्री-पुरुष भाव में नहीं समझने पर भी (नपुंसक) वेद होने में कोई बाधा नहीं है।

*(यहा मैथुन संज्ञा है तथा मैथुन संज्ञा होने पर यह भाव उत्पन्न होते है)*      *(धवला ०१/३४६)*


*प्रश्न १४) एकेन्द्रियों के कषायों का सद्‌भाव कैसे पाया (सिद्ध होता है) जाता है?*

उत्तर- क्वीन्स और न्यू साउथवेल्स के जंगलों में डंक मारने वाले वृक्ष होते हैं। इन वृक्षों पर नुकीले काँटे होते हैं। इनकी पत्तियाँ घने बालों वाली होती हैं। इन वृक्षों के समीप जाने पर पत्तियाँ शरीर से चिपक जाती हैं और अपने रोंयें छोड़ देती हैं, यह उनकी क्रोध कषाय कही जा सकती है।

बरगद आदि वृक्ष अपनी डालियों से शाखाएँ निकालकर भूमि तक पहुँचा देते हैं तथा उन्हें ही अपने जड़ और तने के रूप में परिवर्तित कर लेते हैं। यूकेलिप्टस कुछ ही दिनों में २००–३०० फुट ऊँचाई तक सीधा-सीधा बढ्‌कर एक प्रकार से अपने अभिमान को ही प्रगट करता है।

कीट-भक्षी पौधे स्पष्टरूप से मायावी दिखाई देते हैं। ये अपने रूप, रस, गंध से कीट, पतंगों आदि को अपनी ओर आकर्षित करके नष्ट कर देते हैं। इसी प्रकार अमरबेल भी धीरे- धीरे बढ्‌कर उसी वृक्ष को नष्ट कर देती है।

कई वनस्पतियाँ अपना भोजन जमीन के भीतर अपनी जड़ों/तनों में संचित कर लेती हैं। यूकेलिप्टस अपनी अबू- बाजू का इतना पानी इकट्ठा करके रख लेता है कि ०४ – ०५ वर्ष तक अकाल पड़ने पर भी वह नहीं सूखता है। यह उसकी लोभ कषाय का परिणाम है।


*प्रश्न १५) एकेन्द्रिय जीवों के मिथ्यात्व कैसे सिद्ध होता है?*

उत्तर-एकेन्द्रिय जीवों के गृहीत- अगृहीत आदि सभी मिथ्यात्व सम्भव हैं, क्योंकि जिनका हृदय सात प्रकार के मिथ्यात्वरूपी कलक से अंकित है, ऐसे मनुष्यादि गति सम्बन्धी जीव पहले ग्रहण की हुई मिथ्यात्व पर्याय को न छोड्‌कर जब स्थावर पर्याय को प्राप्त करते हैं, तो उनके सातों’ ही प्रकार का मिथ्यात्व पाया जाता है। इस कथन में कोई विरोध नहीं है।    *(धवला ०१/२७७)*


*प्रश्न १६) क्या सभी एकेन्द्रिय जीवों के सभी मिथ्यात्व हो सकते हैं?*

उत्तर-नहीं, जो एकेन्द्रिय अथवा द्वीन्द्रिय आदि जीव जिन्होंने आज तक संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याय को प्राप्त नहीं किया है उनके पाँचों गृहीत मिथ्यात्व नहीं हो सकते हैं, क्योंकि मन के अभाव मे जीव में किसी के उपदेश को ग्रहण करने की क्षमता नहीं हो सकती है। उपदेश को ग्रहण किये बिना गृहीत मिथ्यात्व नहीं हो सकता है।   *(धवला पुस्तक ०४)*


*प्रश्न १७) एकेन्द्रिय जीवों के कम- से- कम कितने प्राण होते हैं?*

उत्तर-एकेन्द्रिय के निर्वृत्यपर्याप्त तथा लब्ध्यपर्यातक  अवस्था मे कम-से-कम तीन प्राण होते हैं- स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु प्राण। श्वासोच्छास पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले श्वासोच्छास प्राण नहीं होता है। इसलिए निर्वृत्यपर्याप्त तथा लब्ध्यपर्यातक जीवों के तीन प्राण होते हैं।


*प्रश्न १८) एकेन्द्रिय जीवों के आहारादि संज्ञाएँ कैसे सिद्ध होती ईं?*

उत्तर- *आहार संज्ञा* सम्पूर्ण रूप से छाल को उतार देने पर वृक्ष वनस्पति का मरण हो जाता है और जल, वायु आदि के मिलने से वे हरे- भरे हो जाते हैं इसलिए आहार संज्ञा स्पष्ट है।

*भय संज्ञा* स्पर्श कर लेने पर लाजवन्ती आदि वनस्पतियाँ संकुचित हो जाती हैं यह भय संज्ञा है।

*मैथुन संज्ञा* स्त्रियों के कुल्ले के जल से सिंचित होने से कुछ लताएँ आदि हर्षित (पुष्पित) हो जाती हैं तथा स्त्रियों के पैरों के ताड़न से कुछ वनस्पतियों में पुष्प, अंकुर आदि प्रादुर्भूत हो जाते हैं इसलिए मैथुन संज्ञा भी स्पष्ट है।

*परिग्रह संज्ञा* वृक्ष की जड़ें निधान-खजाने आदि की दिशा में फैल जाती हैं इसलिए परिग्रह संज्ञा भी स्पष्ट है ।     *(मू आ. २१७)*

लगभग पूरी बुझी हुई अग्नि भी थोड़ा वायु का झोंका लग जाने पर या रुई आदि अनुकूल ईधन मिलने पर सचेत (पुनर्जीवित हुई) देखी जाती है, इसको उनकी *आहार संज्ञा* कह सकते है।

अग्नि से अग्नि आगे-आगे बढ़ती हुई देख कर *परिग्रह संज्ञा* कही जा सकती है। इसी प्रकार पृथ्वी आदि में भी संज्ञाएँ पाई जाती हैं।

*सिद्धान्त की दृष्टि से वेद कर्म के बन्ध का कारण वेद का उदय कहा गया है। एकेन्द्रिय जीवों के वेद का बन्ध होता है इसलिए उनके  *मैथुनसंज्ञा*  होती ही है, ऐसे ही अपकायिक आदि के उदय के साथ समझना चाहिए।*


*प्रश्न १९) एकेन्द्रिय जीवों के वचनयोग नहीं होता है, फिर उनके मृषानन्दी रौद्रध्यान कैसे हो सकता है?*

उत्तर:-एकेन्द्रिय जीवों के भी स्पर्शन इन्द्रिय के माध्यम से झूठ बोलने में आनन्द की तथा झूठ बोलने वाले की अनुमोदना सम्बन्धी कल्पनाएँ हो सकती हैं।

दूसरी बात, रौद्रध्यान के लिए बोलने की या वचन योग की अतिआवश्यकता भी नहीं है। अत: उनके मृषानन्दी रौद्रध्यान होने में कोई बाधा नहीं है ।


*प्रश्न २०) एकेन्द्रिय जीवों के अपर्याप्त अवस्था में कितने आसव के प्रत्यय होते हैं?*

उत्तर:- एकेन्द्रिय जीवों के अपर्याप्त अवस्था में छत्तीस (३६) आसव के प्रत्यय होते हैं –

मिथ्यात्व-०५, अविरति-०७, कषाय-२३, योग-०१ (औदारिक मिश्र काययोग)


*प्रश्न २१) एकेन्द्रिय जीवों की बावन (५२) लाख जातियाँ कौन- कौनसी हैं?*

उत्तर-एकेन्द्रिय जीवों की जातियाँ- 

पृथ्वीकायिक ०७ लाख,  जलकायिक ०७ लाख  अग्रिकायिक  ०७ लाख,  वायुकायिक ०७ लाख

नित्यनिगोद   ०७ लाख,   इतर निगोद  ०७ लाख

वनस्पति कायिक १० लाख जातियाँ मिलाकर एकेन्द्रिय जीवों की बावन (५२) लाख जातियाँ है।


*प्रश्न २२) एकेन्द्रिय के कितने कुल हैं?*

उत्तर:-एकेन्द्रिय जीवों के ६६ लाख करोड़ कुल हैं-

पृथ्वीकायिक २२ लाख करोड़ 

जलकायिक  ०७ लाख करोड़

अग्निकायिक ०३ लाख करोड़

वायुकायिक   ०७ लाख करोड़  

वनस्पतिकायिक २८ लाख करोड़ कुल मिलाकर 

सडसठ (६७) लाख करोड़ कुल हो जाते है।

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*आगम के परिपेक्ष में (शलभ जैन)*

24) चौबीस ठाणा वैक्रियिक मिश्र काययोग*

*२४) चौबीस ठाणा वैक्रियिक मिश्र काययोग* 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 *जहाँ कार्मण काययोग समाप्त होगा उसके अगले ही क्षण से ही मिश्र काययोग प्रारम्भ हो ...