15. चौबीस ठाणा- वनस्पतिकायिक*
https://youtu.be/8a9e_yMahdQ?si=q6pwJwf8qH0O_1-c
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*२४ स्थान वनस्पतिकायिक*
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*०१) गति ०१/०४* तिर्यंचगति,
*०२) इन्द्रिय ०१/०५* एकेन्द्रिय (स्पर्शनेन्द्रिय)
*०३) काय ०१/०६* स्थावरकाय
स्वकिय काय (वनस्पतिकायिक)
*०४) योग ०३/१५*
औदारिकद्विक काययोग, कार्मण काययोग
*०५) वेद ०१/०३* नपुंसकवेद
*०६) कषाय २३/२५* कषाय १६ नोकषाय ०७
स्त्रीवेद नोकषाय और पुरुषवेद नोकषाय नही होता
*०७) ज्ञान ०२/०८* कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान
*०८) संयम ०१/०७* असंयम
*०९) दर्शन ०१/०४* अचक्षुदर्शन
*१०) लेश्या ०३/०६* कृष्ण, नील, कापोत
*११) भव्यक्त्व ०२/०२* भव्य और अभव्य
*१२) सम्यक्त्व ०२/०६* मिथ्यात्व,सासादन
*१३) संज्ञी ०१/०२* असंज्ञी
*१४) आहारक ०२/०२* आहारक ,अनाहारक
*१५) गुणस्थान ०२/१४* मिथ्यात्व,सासादन
*१६) जीवसमास ०६/१९* वनस्पति संबंघी
नित्यनिगोद सूक्ष्म-बादर, इतरनिगोद सूक्ष्म-बादर, सप्रतिष्ठित प्रत्येक-अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति
*१७) पर्याप्ति ०४/०६*
आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास पर्याप्ति।
*१८) प्राण ०४/१०*
स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु, श्वासोच्छवास प्राण
*१९) संज्ञा ०४/०४* सभी चारो संज्ञा
आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा।
*२०) उपयोग ०३/१२*
कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञानापयोग, अचक्षुदर्शनोपयोग
*२१) ध्यान ०८/१६* आर्त ०४, रौद्र ४
*आर्त* इष्टवियोगज,अनिष्टसंयोगज,वेदना,निदान
*रौद* हिंसानन्दी,मृषानन्दी,चौर्यानन्दी,परिग्रहानन्दी
*२२) आस्रव ३८/५७*
मिथ्यात्व ०५, अविरति ०७, कषाय २३, योग ०३
*मिथ्यात्व०५* विपरीत,एकान्त,विनय,संशय,अज्ञान
*अविरति ०७* स्पर्शन इन्द्रिय को वश नही करना तथा षट्काय के जीवों की रक्षा नहीं करना
*कषाय २३* १६ अनन्तानुबन्धी आदि ०९नोकषाय
*योग ०३* औदारिकद्विक तथा कार्मण काययोग
*२३) जाति २४ लाख/८४ लाख*
नित्यनिगोद ०७ लाख, इतरनिगोद ०७ लाख जाति,
वनस्पति कायिक की १० लाख जातियाँ है।
*२४) कुल–२८ लाख करोड/१९९.५ लाख करोड*
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*प्रश्न २०) वनस्पति जीव कितने प्रकार के होते हैं?*
उत्तर-वनस्पति जीव चार प्रकार के हैं–वनस्पति, वनस्पतिकाय, वनस्पतिकायिक, वनस्पति जीव।
*वनस्पति* जिसका अभयन्तर भाग जीवयुक्त है, और बाह्य भाग जीव रहित है, ऐसे वृक्ष आदि को वनस्पति कहते है।
*वनस्पतिकाय* छिन्न-भिन्न किये गये तृण आदि को वनस्पतिकाय कहते हैं।
*वनस्पतिकायिक* जिसमें वनस्पतिकायिक जीव पाये जाते हैं उन्हें वनस्पतिकायिक जीव कहते हैं।
*वनस्पतिजीव* विग्रहगति में स्थित जीव जो वनस्पति मे जन्म लेने जा रहा है।
*(सि.सा.दी. ११/२२-२५)*
*प्रश्न २१) उत्पत्ती अपेक्षा वनस्पति जीव कौन-कौन से होते हैं?*
उत्तर-पर्व, बीज, कन्द, स्कन्ध तथा बीजबीज, इनसे उत्पन्न होने वाली वनस्पति और सम्मूर्च्छन वनस्पति कही गयी है जो प्रत्येक और साधारण (अनन्तकाय) दो भेद रूप है । मूल में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियाँ बीज हैं। *जैसे* हल्दी आदि । *(गो. जी. १८६)*
पर्व=गाँठ (पोर), बीज=धान आदि, कंद=पिण्डालु,
*प्रश्न २२) वनस्पति कितने प्रकार की होती है?*
उत्तर-वनस्पति दो प्रकार की होती है-साधारण (अनंतकाय) वनस्पति और प्रत्येक वनस्पति।
*प्रश्न २३) साधारण वनस्पति किसे कहते हैं?*
उत्तर-जो साधारण नाम कर्म के उदय से होती है वह साधारण वनस्पति है।
जिस कर्म के उदय से जीव साधारण शरीर होता है उस कर्म कि साधारण शरीर यह संज्ञा है।
*(धवला ०६/६३)*
जिस कर्म के उदय से एक ही शरीर वाले होकर अनन्त जीव रहते हैं,वह साधारण शरीर नामकर्म है।
*(धबला १३/३६५)*
साधारण यानि काँमन, जो अनेक जीवो (अनंत जीव) के लिए काँमन है वह साधारण वनस्पति है।
यह साधारण वनस्पति निगोदिया जीव है।
मूल मे जो जीव है उस जीव का जो शरीर होता है वह एक ही शरीर है और इस शरीर के स्वामी अनंत होते है ये निगोदिया जीव होते है।
*यानि शरीर एक आत्मा अनंत*
साधारण वनस्पति जीवो में अनंत जीवो का भोजन भी एक साथ, श्वास भी एक साथ, जन्म मरण भी एक साथ करते है। इनकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है अर्थात् निगोद जीवों की अवगाहना होती है *इसके भी दो भेद है–नित्य निगोद और इतर निगोद*
*नित्य निगोद* जिन जीवों ने आज तक निगोद के अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय नहीं पाई उन्हें नित्य निगोद कहते हैं*
*नित्य निगोद के दो भेद होते है- अनादि अनंत नित्यनिगोद, अनादि सांत नित्यनिगोद*
*इतर निगोद* जो जीव निगोद से निकल त्रस पर्याप प्राप्त कर पुनः निगोद मे चले जाते वे इतर निगोद कहलाते है
*नित्य व इतर निगोद दोनो के भी दो -दो भेद है सुक्ष्म और बादर*
*प्रश्न २४) प्रत्येक वनस्पति किसे कहते हैं?*
उत्तर-जो प्रत्येक नाम कर्म के उदय से होती है वह प्रत्येक वनस्पति है। प्रत्येक यानि अपना-अपना शरीर (मालिक) *यानि शरीर एक स्वामी भी एक*
*(धवला ०१/२७०)*
जिस जीव ने एक शरीर में स्थित होकर अकेले ही सुख-दुःख के अनुभव रूप कर्म उपार्जित किया है वह जीव प्रत्येक शरीर है। *(धवला ०३/३३३)*
*प्रत्येक वनस्पति की जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्ठ अवगाहना एक हजार योजन तक की अवगाहना होती है। एक हजार की अवगाहना स्वयंभूरमणसमुद्र में कमल की है*
*प्रत्येक वनस्पति के दो भेद है सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्येक*
*✍️सप्रतिष्ठित प्रत्येक* शरीर एक स्वामी एक लेकिन इसके आश्रय से अनन्त जीव रहते है।
*जैसे* जितने भी जमीकंद है सभी सप्रतिष्ठित प्रत्येक है। सभी सप्रतिष्ठित वनस्पती अभक्ष्य है। इनमे अनंत जीव पाए जाते है ये अभक्ष्य है।
*जिसका कंद, मूल क्षुद्र शाखा या स्कंध की छाल मोटी हो, जिनकी शिरा, संधि, पर्व अप्रकट हों, जिनका भंग करने पर समान भंग हो, छेदन करने पर भी जो उग आवें, वे सभी सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकाय है*
*विशेष* आलू, प्याज, मूली आदि ये सभी प्रत्येक वनस्पति है लेकिन इनके आश्रय से अनेक साधारण निगोदिया जीव रहते है। इसलिए उपचार से इसे साधारण वनस्पति कह देते है। शास्त्र मे इसका नाम सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहलाता है।
*अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति* जिनका शरीर एक, स्वामी एक और आश्रय से कोई जीव नही रहता है उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते है।
*जैसे* लौकी, करेला, गिलकी, शिमला मिर्च, खीरा, केला, सेव, अनार, आम आदि सभी अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहलाती है।
*प्रश्न २५) स्थावर और एकेन्द्रिय में क्या अन्तर है?*
उत्तर-एकेन्द्रिय नामकर्म में इन्द्रिय की मुख्यता है और स्थावर नामकर्म में काय की मुख्यता है। एकेन्द्रिय जीवों के एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है और स्थावर जीवों के पृथ्वीकायिक आदि नामकर्म का उदय होता है।
*प्रश्न २६) वनस्पति-कायिक सम्बन्धी कितने जीवसमास हैं?*
उत्तर-वनस्पतिकायिक सम्बन्धी छह जीवसमास हैं-
नित्यनिगोद सूक्ष्म, नित्यनिगोद बादर,
इतरनिगोद सूक्ष्म, इतरनिगोद बादर,
सप्रतिष्ठित प्रत्येक, अप्रतिष्ठित प्रत्येक
*प्रश्न २७) वनस्पति सम्बन्धी २४ लाख जातियाँ कौन-कौन सी हैं?*
उत्तर-वनस्पति सम्बन्धी २४ लाख जातियाँ-
नित्यनिगोद की ०७ लाख जाति,
इतरनिगोद की ०७ लाख जाति,
वनस्पति कायिक की १० लाख जातियाँ है।
*नोट* नित्यनिगोद एवं इतर निगोद को वनस्पतिकायिक में ग्रहण नहीं करने पर १० लाख जातियाँ ही होती हैं।
*प्रश्न २८) क्या ऐसे कोई वनस्पतिकायिक जीव हैं, जिनके कार्मण काययोग होता ही नहीं है ?*
उत्तर-हाँ है, जो वनस्पतिकायिक जीव ऋजुगति से जाते हैं, उनके कार्मण काययोग नहीं होता है।
*नोट* इसी प्रकार ऋजुगति से जाने वाले सभी जीवों के जानना चाहिए ।
कार्मण काययोग अनाहारक अवस्था मे होता है, तथा ऋजुगति से जाने पर वह एक ही समय की होती है तथा वहा पर पहले उसी समय मे भी आहार वर्गणा का ग्रहण होता रहता है, अनाहारक नहीं रहते तो कार्मण काययोग कैसे होगा यानि नही होगा।
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*शलभ*