मध्यलोक मे जम्बूद्वीप के उत्तरकुरु मे, नील पर्वत के समीप, सीता नदी के पूर्व तट पर, सुदर्शन मेरु की ईशान दिशा में जम्बूवृक्ष की स्थली है। जिसके ऊपर जम्बूवृक्ष है जम्बू यानि जामुन का वृक्ष। इसी प्रकार सीतोदा नदी के पश्चिम तट पर, निषध कुलाचल के समीप, सुदर्शन मेरु की नैऋत्य दिशागत देवकुरु क्षेत्र मे शाल्मली वृक्ष की मनोहारिणी स्थली है। यह वृक्ष अनादिनिधन है किसी ने नही बनाया। इसके ऊपर अकृत्रिम जिन चैत्यालय और व्यंतर देवो का निवास है। यह नाना प्रकार रत्नमयी उपशाखाओं से युक्त, मूँगा के समान वर्ण वाले पुष्प और मृदंग समान फलों से युक्त पृथ्वीकायमय वृक्ष है
✍️जम्बूस्थली
जम्बूस्थली का तल व्यास 500 योजन है। यह स्थली अंत मे अर्थात किनारो पर 1/2 योजन मोटी और मध्य में 8 योजन ऊँची गोल आकार वाली सुवर्णमयी है। जम्बूस्थली के ऊपरीम भाग में एक दुसरे को घेरते हुए 12 अम्बुज वेदिका, जिसकी ऊँचाई आधा योजन व चौडाई योजन का सोलहवा भाग है। ये सभी बारह वेदिया चार चार गोपूर द्वारो से युक्त है
✍️जम्बूपीठ जम्बूवृक्ष का वर्णन
जम्बूस्थली के बीच मे 08 योजन ऊँची, 12 योजन भूव्यास, 04 योजन मुख व्यास वाली जम्बूपीठ है। पीठ के बहुमध्य भाग में पादपीठ सहित मुख्य जम्बूवृक्ष है जिसका मरकत मणिमय स्कंध पीठ से 02 योजन ऊँचा, 01 कोस चौडा, 1/2 योजन नीव सहित है। स्कंध के ऊपर वज्रमय 1/2 योजन चौडी और 06 योजन लम्बी चार शाखाएँ है। शाखाओ मे मरकत, वैडूर्य, इन्द्रनील, स्वर्ण और मूंगे से निर्मित विविध प्रकार के पत्ते हैं। वृक्ष की सम्पूर्ण ऊँचाई 10 योजन, मध्य मे चौडाई 6 योजन और अग्र भाग की चौडाई 04 योजन है। जम्बूवृक्ष की जो शाखा उत्तरकुरुगत नील कुलाचल की ओर गई उस पर एक अकृत्रिम जिनमन्दिर है। यह 3/4 कोस ऊँचा, 1 कोस लम्बा और 1/2 कोस विस्तार वाला अदभुत रत्नमय जिनभवन है। शेष तीन शाखाओ पर यक्ष कुलोत्पन आदर-अनादर देवो के भवन है
✍️ जम्बूवृक्ष के परिवार वृक्षो का विवरण
मुख्य जम्बूवृक्ष की ओर से शुरु करते हुए प्रथम और द्वितीय वेदिका के अन्तराल में परिवार वृक्ष आदि कुछ नही है
तीसरे अन्तराल की आठो दिशाओ में उत्कृष्ट यक्ष आदर-अनादर देवो के 108 जम्बूवृक्ष है
चौथे अन्तराल के पूर्व दिशा में यक्ष देवांगना के 04 जम्बूवृक्ष है
पाँचवे अन्तराल मे वन है और उन वनो मे चौकोर, गोल आकार वाली बावडिया है
छठे अंतराल में कोई रचना नही है
सातवे अंतराल में प्रत्येक दिशा मे चार-चार हजार करके कुल 16000 तनुरक्षकों के जम्बूवृक्ष है। ये यक्षो के अंगरक्षक देवो के वृक्ष है
आठवे अंतराल में ईशान, उत्तर और वायव्य दिशा में सामानिक देवो के चार हजार जम्बूवृक्ष है
नौवे अंतराल में आग्नेय दिशा में अभ्यन्तर पारिषद देवो के 32000 जम्बूवृक्ष है।
दसवे अंतराल की दक्षिण दिशा में मध्यम पारिषद देवो के 40000 जम्बूवृक्ष है।
ग्यारहवे अंतराल की वायव्य दिशा में बाहय पारिषद देवो के 48000 जम्बूवृक्ष है।
बारहवे अन्तराल की पश्चिम दिशा में सेना महत्तरो के सात ही जम्बूवृक्ष है।
परिवार जम्बूवृक्षो का प्रमाण मुख्य जम्बूवृक्ष के प्रमाण का आधा है। परिवार जम्बूवृक्षो की जो शाखाए है उन पर भी आदर-अनादर यक्ष परिवार देवो के आवास है। मुख्य जम्बूवृक्ष से युक्त सम्पूर्ण परिवार वृक्षो की संख्या 140120 है। इसी वृक्ष के कारण हमारे द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है।
✍️शाल्मली वृक्ष
देवकुरु क्षेत्र मे शाल्मली वृक्ष की मनोहारिणी स्थली है जिसका वर्णन जम्बूवृक्ष के जैसा ही है। शाल्मली वृक्ष की दक्षिण शाखा पर जिनमन्दिर है शेष तीन शाखाओं पर गुरुडपति वेणु-वेणुधारी देवो के आवास है। ये अपने परिवार सहित 140120 शाल्मली वृक्ष है जिन पर भी वेणु-वेणुधारी देवो के आवास है।
✍️अन्य द्वीपो के वृक्षो का प्रमाण
जम्बूद्वीप के जम्बूवृक्ष की तरह पूर्व और पश्चिम धातकीखंड द्वीप के चारो कुरुओं मे एक-एक के हिसाब से कुल चार धातकी (आवला) वृक्ष है। इसी धातकीवृक्ष के कारण द्वीप का नाम धातकीखंड द्वीप है। इसका समस्त कथन जम्बूवृक्ष के समान है। धातकीखंड के परिवार वृक्ष 560480 है।
धातकीखंड द्वीप के समान ही पूर्व और पश्चिम पुष्करार्ध द्वीप के चारो कुरुओं में पुष्कर (कमल) वृक्ष है जिसकी youtubeसंख्या 560480 है। इसी पुष्कर वृक्ष के कारण द्वीप का नाम पुष्करद्वीप है। इसका समस्त विवरण जम्बूवृक्ष के समान है।
*विशेष* शाखाओ की लम्बाई तिलोयपण्णत्ती जी गाथा 2181 के अनुसार 06 योजन लम्बी त्रिलोकसार गाथा 647 अनुसार 08 योजन लम्बी है।
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शलभ