Friday, 1 September 2023

गजदंत पर्वत, देवकुरु-उत्तरकुरु भोगभूमि

मध्यलोक के असंख्यात द्वीप व असंख्यात समुद्र के बीच मे जम्बूद्वीप नामक एक लाख योजन विस्तार का एक द्वीप है, जिसके सात क्षेत्रो मे से चौथे क्षेत्र का नाम विदेह है। विदेहक्षेत्र के दक्षिण मे निषध और उत्तर दिशा मे नील कुलाचल है। कुलाचलो की ऊँचाई 400 योजन, नीव 100 योजन व चौडाई 16842 पूर्णांक 2/19 योजन है। विदेह के मध्य मे उत्तरकुरु व देवकुरु दो उत्तम भोगभूमि के मध्य मे सुदर्शन मेरु है। मेरु को स्पर्श करते हुए चार गजदंत पर्वत, चार यमकगिरी, अनाधिनिधन जम्बूवृक्ष और शाल्मलि वृक्ष सीता-सीतोदा महानदी है। यहा 20 सरोवर, सरोवरो के दोनो ओर 200 कांचन पर्वत, 08 दिग्गजेन्द्र पर्वत है। 

✍️देवकुरु-उत्तरकुरु
यह उत्कृष्ठ भोगभूमि क्षेत्र है जीव युगल जन्म लेते और युगल ही मरण को प्राप्त होते है। 10 प्रकार के कल्पवृक्ष होने से जीव सुख ही भोगते है। देवकुरु भोगभूमि मे पूर्व और पश्चिम दिशा के अंत से लेकर मेरु पर्वत तक दो गजदंत पर्वत से क्षेत्र धनुषाकार हो गया। उत्तरकुरु भोगभूमि मे पूर्व और पश्चिम दिशा के अंत से लेकर मेरुपर्वत तक दो गजदंत पर्वत से यह क्षेत्र भी धनुषाकार हो जाता है। यहा अनाधिनिधन जम्बूवृक्ष और शाल्मलि वृक्ष, 04 यमकगिरी, सीता-सीतोदा महानदी है। दोनो महानदी संबंधी 10 सरोवर, इन सरोवर के दोनो ओर 100 कांचन पर्वत, 4 दिग्गजेन्द्र पर्वत है।

✍️ गजदंत पर्वत
◆माल्यवान पर्वत उत्तरकुरु भोगभूमि की पूर्व दिशा मे नील पर्वत के दक्षिण की ओर मेरु पर्वत से ईशान दिशा से दक्षिण उत्तर लम्बा, वैडूर्यमणी वर्ण का माल्यवान गजदंत पर्वत है। यह उत्तरी कोने से नील कुलाचल और दक्षिणी कोने से मेरु पर्वत को स्पर्श करता है। इसके ऊपर नौ कूट है।  हरिसिंह, सीता, पूर्णभद्र, रजत, सागर, कच्छा, उत्तरकुरु, माल्यवान तथा सिद्धायतन स्थित है। 

◆सोमनस गजदंत पर्वत देवकुरु भोगभूमि की पूर्व दिशा में निषध पर्वत से उत्तर की ओर मेरु पर्वत की आग्नेय दिशा में दक्षिण उत्तर लम्बा रजत वर्ण का सोमनस गजदंत पर्वत है। यह दक्षिण कोने से निषधाचल और उत्तरी कोने से मेरु को स्पर्श करता है। इसके ऊपर सात कूट है। वशिष्ठ, कांचन, विमल, मंगल, देवकुरु, सौमनस, सिद्धायतन कूट स्थित है। 

◆विद्युत्प्रभ पर्वत देवकुरु भोगभूमि की पश्चिम दिशा में निषध पर्वत से उत्तर की ओर मेरु पर्वत की नैऋत्य दिशा मे दक्षिण उत्तर लम्बा सुवर्णमई वर्ण का विद्युत्प्रभ गजदंत पर्वत है। यह दक्षिणी कोने से निषध कुलाचल को ओर उत्तरी कोने से मेरु पर्वत को स्पर्श करता है। इसके ऊपर नौ कूट है। हरि, सीतोदा, सज्जवाल, स्वस्तिक, तपन, पदमवान, देवकुरु, विद्युत्प्रभ तथा सिद्धायतन कूट स्थित है। 

◆गंधमादन पर्वत उत्तरकुरु भोगभूमि की पश्चिम दिशा मे नील पर्वत से दक्षिण की ओर मेरु पर्वत से वायव्य दिशा मे दक्षिण उत्तर लम्बा सुवर्णमई वर्ण का गंधमादन गजदंत पर्वत है। यह उत्तरी कोने से नील कुलाचल को दक्षिणी कोने से मेरु पर्वत को स्पर्श करता है। इसके ऊपर सात कूट है। आनन्द, स्फटिक, लोहित, गन्धमालिनी, उत्तरकुरु, गन्धमादन तथा सिद्धायतन कूट है। 

✍️गजदंतो का माप
मेरु के ईशान कोण मे माल्यवान पर्वत, आग्नेय दिशा मे सोमनस पर्वत, नैऋत्य मे विद्युत्प्रभ पर्वत और व्याव्य दिशा मे गंधमादन गजदंत पर्वत हैं। चारो गजदंतो की लम्बाई 30209 पूर्णांक 6/19 योजन, चौडाई 500 योजन, ऊँचाई कुलाचल के पास 400 योजन ऊँचे व क्रमशः बढते-बढते मेरु के समीप मे 500 योजन ऊँचा हो जाता है। इनकी नीव अपनी ऊँचाई का चतुर्थ भाग प्रमाण जमीन में है। सभी कूटो पर व्यंतर देविया निवास करती है तथा सिद्धायतन कूट के ऊपर अकृत्रिम जिन चैत्यालय है जो 125 योजन प्रमाण ऊँचे है। 

✍️ सीता-सीतोदा नदी
निषध कुलाचल के ऊपर तिगिंछ सरोवर से सीतोदा नदी निकलती है जो कि मेरु के समीप अर्द्ध परिक्रमा करती हुई पश्चिम की और मुड जाती है  सीतोदा नदी मे पाँच-पाँच करके कुल 10 सरोवर व प्रत्येक सरोवर के दोनो तरफ 10 कांचन करके 100 कांचन पर्वत है। 
निषध कुलाचल की तरह नील कुलाचल पर स्थित केसरी सरोवर से सीता नदी निकलती है जो मेरु के समीप अर्द्ध परिक्रमा करती हुई पूर्व की और मुड जाती है। सीता नदी मे भी 10 सरोवर तथा प्रत्येक सरोवर के दोनो तरफ 10 कांचन करके कुल 100 कांचन पर्वत है। 

✍️यमक गिरी (कूट)
निषध और नील कुलाचलो से मेरु पर्वत की ओर 1000 योजन आगे जाकर सीता और सीतोदा नदियो के दोनो तटो पर दो-दो पर्वत है। इनमे से सीता नदी के पूर्व तट पर चित्र पश्चिम तट पर विचित्र नाम पर्वत है। दोनो पर्वतो के बीच मे 500 योजन का अंतराल है जिसके बीच मे सीता नदी बहती है सीतोदा नदी के पूर्व तट पर यमक और पश्चिम तट पर मेघ नामक पर्वत है। इन दोनो पर्वतो के बीच मे 500 योजन का अंतराल है जिसके बीच मे सीतोदा नदी बहती है। इन चारो यमककूट की ऊंचाई 1000 योजन, मूल मे चौडाई 1000 योजन और शिखर पर चौडाई 500 योजन प्रमाण हैं। चारो कूट सुवर्णमयी वर्ण के है। इन कूटो के ऊपर कूटो के नाम वाले चार व्यंतर देव सपरिवार निवास करते है। 

✍️सरोवर
यमकगिरि से 500 योजन आगे जाकर सीता और सीतोदा नदी मे 20 सरोवर है जो देवकुरु, उत्तरकुरु, पूर्व भद्रशाल वन और पश्चिम भद्रशाल वन के मध्य पाँच-पाँच के रुप से स्थित है। एक सरोवर से दुसरे सरोवर के बीच मे 500 योजन का अंतर है। इन सरोवर का प्रमाण पदम सरोवर के सदृश्य है। यहा के मुख्य कमल पर नागकुमारी देविया परिवार के साथ निवास करती है। 
देवकुरु के पाँच सरावरो के नाम –तिगिंछ सरोवर से शुरु करते हुए–निषध, देवकुरु, सूर, सूलस, विद्युत
उत्तरकुरु के पाँच सरावरो के नाम–केसरी सरोवर से शुरु करते हुए–नील, उत्तरकरु, चन्द्र, ऐरावत, माल्यवान सरोवर

✍️कांचन पर्वत
प्रत्येक सरोवर के पूर्व-पश्चिम तट पर पंक्ति रुप से पाँच पाँच करके दस कांचन पर्वत है। जिससे सभी 20 सरोवरो के पर्वतो की संख्या 200 हो जाती है। कांचन पर्वत ऊंचाई 100 योजन मूल मे चौडाई 100 योजन और शिखर पर चौडाई 50 योजन है। कांचन पर्वत के ऊपर कांचन देवो के निवास है, इन कांचन के ऊपर गंधकुटी अर्थात जिन चैत्यालय बने हुए है। ये पर्वत सुवर्णमयी वर्ण के है। 

✍️दिग्गजेन्द्र पर्वत
उत्तरकुरु, देवकुरु भोगभूमि और पूर्व व पश्चिम भद्रशाल वन के मध्य मे सीता और सीतोदा महानदी के दोनो तटो पर दो-दो पर्वत कुल आठ दिग्गजेन्द्र पर्वत स्थित है। 
मेरु की पूर्व मे भद्रशाल वन की सीता नदी के उत्तर दिशा मे पदमोत्तर दक्षिण दिशा मे नीलवान पर्वत है।
मेरु की दक्षिण मे भद्रशाल वन मे सीतोदा नदी के पूर्व दिशा मे स्वास्तिक पश्चिम दिशा मे अंजन पर्वत है।
मेरु की पश्चिम मे भद्रशाल वन मे सीतोदा नदी के दक्षिण दिशा मे कुमुद उत्तर दिशा मे पलास पर्वत है।
मेरु की उत्तर मे भद्रशाल वन की सीता नदी के पश्चिम दिशा पर अवंतस पूर्व दिशा मे रोचन पर्वत है।
आठो पर्वत पर दिग्गजेन्द्र देव का निवास है जिसकी ऊँचाई 100 योजन मूल मे चौडाई 100 योजन तथा शिखर पर चौडाई 50 योजन है 
       ।। जिनवाणी माता की जय।।

7. चौबीस ठाणा में मनुष्यगति मार्गणा

*✍️ मनुष्यगति में चौबीस ठाणा* https://youtu.be/zC4edAGojCs?si=w9wU8fxsCnEIxFEt 🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴 जिनके मनुष्य गति नामकर्म का उदय पाया जाता ...